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बल देते रहे। वे कहते कि यह आत्मा ही अनन्त ज्ञान और सुख का भंडार है-इसकी श्रद्धा किये बिना, इसे जाने बिना और इसमें लीन हुए बिना कोई भी कभी सच्चा सुख प्राप्त नही कर सकता है। लाखों जीवों ने उनके उपदेशों से लाभ लेकर प्रात्मशान्ति प्राप्त की। महाकवि भूधरदासजी उनके उपदेशों के प्रभाव का चित्रण करते हुए लिखते हैं - केई मुक्ति जोग बड़भाग,
भये दिगम्बर परिग्रह त्याग। किनही श्रावक व्रत आदरे,
पसु पर्याय अनुव्रत धरे ।। केई नारी अर्जिका भई,
भर्ता के संग वन को गई। केई नर पशु देवी देव,
सम्यक् रत्न लह्यो तहां एव।।
इह विध सभा समूह सब, निवसै प्रानन्द रूप।
मानों अमृत रूप सौं, सिचत देह अनूप।। इस प्रकार वे उपदेश देते हुए अन्त में सौ वर्ष की आयु में श्रावण शुक्ला सप्तमी के दिन सम्मेदशिखर के सुवर्ण-भद्रकट से निर्वाण पधारे।
प्रश्न
१. कविवर पं. भूधरदासजी को संक्षिप्त परिचय दीजिये। २. पारसनाथ हिल के बारे में आप क्या जानते हैं ? ३. भगवान पार्श्वनाथ का संक्षिप्त जीवन-परिचय दीजिये। ४. “धरणेन्द्र-पद्मावती ने पार्श्वनाथ की रक्षा की थी,”– इस सम्बन्ध में अपने
विचार व्यक्त दीजिये। ५. वह कौनसी घटना थी, जिसे देख पार्श्वकुमार दिगम्बर साधु हो गये ?
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