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सप्त व्यसन
जुआ आमिष मदिरा दारी, आखेटक चोरी परनारी। एही सात व्यसन दुखदाई, दुरित मूल दुर्गति के भाई ।।
दर्वित ये सातों व्यसन, दुराचार दुखधाम । भावित अंतर-कल्पना, मृषा मोह परिणाम।।
अशुभ हार शुभ में जीत यहै देह की मगनताई, यह माँस मोह की गहल सों अजान यहै सुरापान । कुमति की रीति गणिका को रस चखिबो || निर्दय है प्राण- घात करबो यहै शिकार । पर-नारी संग पर बुद्धि को परखिबो ।। प्यार सों पराई सौंज गहिबे की चाह चोरी | एई सातों व्यसन विडारि ब्रह्म लखिबो ।। पण्डित बनारसीदासजी
द्यूत कर्म । भखिबो ।।
शिकार
जुआ खेलना, माँस खाना, मदिरापान करना, वेश्यागमन करना, खेलना, चोरी करना, परस्त्री - सेवन करना ये सात व्यसन हैं ।
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किसी भी विषय में लवलीन होने को अर्थात् आदत को व्यसन कहते हैं यहाँ बुरे विषय में लीन होना व्यसन कहा गया है और इसके सात भेद कहे हैं, जो जीवों में प्रमुख रूप से प्राकुलता पैदा करते हैं और दुराचारी बनाते हैं, वैसे राग-द्वेष और आकुलता उत्पन्न करनेवाली सभी आदतें व्यसन ही हैं। निश्चय से तो आत्मा के स्वरूप को भूला दे, वे मिथ्यात्व से युक्त राग- - द्वेष परिणाम ही व्यसन हैं ।
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