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कविताओं में मग्न रहे। इनकी सर्वप्रथम कृति 'नवरस १४ वर्ष की उम्र में तैयार हो गई थी, जिसमें अधिकांश श्रृंगार रस ही का वर्णन था । यह इस रस की एक उत्कृष्ट कृति थी, जिसे विवेक जागृत होने पर कवि ने गोमती नदी में बहा दिया।
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इसके पश्चात् प्रापका जीवन अध्यात्ममय हो गया और उसके बाद की रचित चार रचनाएँ प्राप्त हैं 'नाटक समयसार', 'बनारसी विलास', 'नाममाला' और 'अर्द्धकथानक'।
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नाटक समयसार' अमृतचंद्राचार्य के कलशों का एक तरह से पद्यानुवाद है, किन्तु कवि की मौलिक सूझबूझ के कारण इसके अध्ययन में स्वतन्त्र कृति-सा आनंद आता है। यह ग्रन्थराज अध्यात्म सराबोर है।
'अर्द्धकथानक ' हिन्दी भाषा का प्रथम प्रात्म - चरित्र है, जो कि अपने आप में एक प्रौढ़तम कृति है। इसमें कवि का ५५ वर्ष का जीवन आईने के रूप में चित्रित है।
' बनारसी - विलास' कवि की अनेक रचनाओं का संग्रह - ग्रन्थ है और ' नाममाला' कोष – काव्य है ।
कवि अपनी आत्म-साधना और काव्य - साधना दोनों में ही बेजोड़ हैं।
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