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पाठ ६
| सप्त व्यसन कविवर पण्डित बनारसीदासजी
___ (व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व) अध्यात्म और काव्य दोनों क्षेत्रों में सर्वोच्च प्रतिष्ठा-प्राप्त पं. बनारसीदासजी सत्रहवीं शताब्दी के रससिद्ध कवि और आत्मानुभवी विद्वान थे।
आपका जन्म श्रीमाल वंश में लाला खरगसेन के यहाँ वि. सं. १६४३ में माघ सुदी एकादशी रविवार को हना था। उस समय इनका नाम विक्रमजीत रखा गया था, परन्तु बनारस की यात्रा के समय पार्श्वनाथ की जन्मभूमि वाराणसी के नाम पर इनका नाम बनारसीदास रखा गया। ये अपने माँ-बाप की इकलौती संतान थे।
आपने अपने जीवन में बहुत से उतार-चढ़ाव देखे थे। आर्थिक विषमता का सामना भी आपको बहुत बार करना पड़ा था तथा आपका पारिवारिक जीवन भी कोई अच्छा नहीं रहा। आपकी तीन शादियाँ हुई, नौ संतानें हुईं-७ पुत्र एवं २ पुत्रियाँ; पर एक भी जीवित नहीं रहीं। ऐसी विषम-स्थिति में भी आपका धैर्य भंग नहीं हुआ, क्योंकि वे प्रात्मानुभवी पुरुष थे।
काव्य-प्रतिभा तो आपको जन्म से ही प्राप्त थी। १४ वर्ष की उम्र में आप उच्चकोटि की कविता करने लगे थे, पर प्रारम्भिक जीवन में श्रृंगारिक
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