SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 34
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates १. जुना - हार-जीत पर दृष्टि रखते हुए रुपये पैसे या किसी प्रकार के धन से कोई भी खेल खेलना या शर्त लगाकर कोई काम करना या दाव लगाकर अधिक लाभ की आशा या हानि का भय होना द्रव्य-जुअा है। शुभ ( पुण्योदय ) में जीत (हर्ष) तथा अशुभ ( पापोदय ) में हार (विषाद) मानना भाव-जुया है। इस भाव ( मान्यता) का त्याग ही सच्चा जुना या त्याग है। २. मांस खाना - मार कर या मरे हुए त्रस जीवों का कलेवर खाने में प्रासक्त रहना एवं भक्षण करना द्रव्य मांस खाना व्यसन है। देह में मगन रहना अर्थात् शरीर के पुष्ट होने पर अपना (आत्मा का) हित एवं शरीर के दुबले होने पर अपना (आत्मा का) अहित मानना भाव-मांस खाना व्यसन है। ३. मदिरापान - शराब, भांग, चरस, गांजा आदि नशीली वस्तुओं का सेवन करना द्रव्य-मदिरापान है। तथा मोह में पड़कर आत्मस्वरूप से अनजान रहना , भाव मदिरापान है। ४. वेश्यागमन करवू- वेश्या से रमना, उसके घर आना-जाना द्रव्य रूप से वेश्यागमन है तथा खोटी बुद्धि में रमने का भाव, भाव वेश्यागमन है अर्थात् अपने आत्मस्वभाव को छोड़ विषय-कषाय में बुद्धि रमाना ही भाव वेश्यारमण है। वेश्या धन, स्वास्थ्य तथा इज्जत नष्ट कर छोड़ देती है, पर मिथ्यामति ( कुबुद्धि) तो आत्मा की प्रतिष्ठा को हर कर अनंतकाल के लिए निगोद के दुःखों में ढकेल देती है। ५. शिकार खेलना - जंगल के रीछ, बाघ, हिरण, सुअर वगैरह स्वच्छन्द फिरने वाले जानवरों को तथा छोटे-छोटे पक्षियों को निर्दय होकर बन्दूक आदि किसी भी हथियार से मारना व मारकर आनन्दित होना द्रव्यरूप से शिकार खेलना है। ३१ Please inform us of any errors on [email protected]
SR No.008325
Book TitleVitrag Vigyana Pathmala 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1997
Total Pages51
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Education, Spiritual, & Philosophy
File Size719 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy