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छात्र
अध्यापक
छात्र
अध्यापक क्यों ?
अध्यापक
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छात्र शास्त्र में तो कथायें होती हैं। हमारे पिताजी तो कहते थे कि मन्दिर चला करो, शाम को वहाँ शास्त्र बँचता है, उसमें अच्छीअच्छी कहानियाँ निकलती हैं।
छात्र
अध्यापक
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छाञ
अध्यापक
चार अनुयोग
मोक्षमार्गप्रकाशक में किसकी कहानी है ?
मोक्षमार्गप्रकाशक में कहानी थोड़े हो हैं, उसमें तो मुक्ति का मार्ग बताया गया है।
अच्छा तो मोक्षमार्ग प्रकाशक क्या शास्त्र नहीं है ?
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छात्र
अध्यापक शास्त्र तो जिनवाणी को कहते हैं, उसमें तो वीतरागता का पोषण होता है। उसके कथन करने की विधियाँ चार हैं; जिन्हें अनुयोग कहते हैं - प्रथमानुयोग, करणानुयोग, चरणानुयोग और द्रव्यानुयोग । हमें तो कहानियों वाला शास्त्र ही अच्छा लगता है, उसमें खूब आनन्द आता है।
—
हाँ! हाँ!! शास्त्रों में महापुरुषों की कथायें भी होती हैं। जिन शास्त्रों में महापुरुषों के चरित्रों द्वारा पुण्य-पाप के फल का वर्णन होता है और अंत में वीतरागता को हितकर बताया जाता है, उन्हें प्रथमानुयोग के शास्त्र कहते हैं।
तो क्या शास्त्र कई प्रकार के होते हैं ?
भाई ! शास्त्र की अच्छाई तो वीतरागतारूप धर्म के वर्णन में है, कोरी कहानियों में नहीं ।
तो फिर यह कथाएँ शास्त्रों में लिखी ही क्यों हैं ?
तुम ही कह रहे थे कि हमारा मन कथाओं में खूब लगता है। बात यही है कि रागी जीवों का मन केवल वैराग्य - कथन में लगता नहीं। अतः जिस प्रकार बालक को पतासे के साथ दवा देते हैं, उसी
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