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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates प्रकार तुच्छ बुद्धि जीवों को कथाओं के माध्यम से धर्म ( वीतरागता) में रुचि करातें हैं और अंत में वैराग्य का ही पोषण करते हैं। छात्र - अच्छा! यह बात है। यह पुराण और चरित्र-ग्रंथ प्रथमानुयोग में ही आते होंगे। करणानुयोग में किस बात का वर्णन होता है ? अध्यापक – करणानुयोग में गुणस्थान, मार्गणास्थान आदि रूप तो जीव का वर्णन होता है और कर्मों तथा तीनों लोकों का भूगोल सम्बन्धी वर्णन होता है। इसमें गणित की मुख्यता रहती है, क्योंकि गणना और नाप का वर्णन होता है न! छात्र - यह तो कठिन पड़ता होगा ? अध्यापक – पड़ेगा ही, क्योंकि इसमें प्रति सूक्ष्म केवलज्ञानगम्य बात का वर्णन होता है। गोम्मटसार जीवकाण्ड, गोम्मटसार कर्मकाण्ड, लब्धिसार और त्रिलोकसार ऐसे ही ग्रन्थ हैं। छात्र - चरणानुयोग सरल पड़ता होगा? अध्यापक – हाँ! क्योंकि इसमें अति सूक्ष्म बुद्धिगोचर कथन होता है। इसमें सुभाषित, नीति-शास्त्रों की पद्धति मुख्य है, क्योंकि इसमें गृहस्थ और मुनियों के आचरण नियमों का वर्णन होता है। इस अनुयोग में जैसे भी यह जीव पाप छोड़कर धर्म में लगे अर्थात् वीतरागता में वृद्धि करे वैसे ही अनेक युक्तियों से कथन किया जाता है। छात्र - तो रत्नकरण्ड श्रावकाचार इसी अनुयोग का शास्त्र होगा ? अध्यापक – हाँ! हाँ!! वह तो है ही। साथ ही मुख्यतया पुरुषार्थ-सिद्धियुपाय आदि और भी अनेक शास्त्र हैं। छात्र - तो क्या समयसार और द्रव्यसंग्रह भी इसी अनुयोग के शास्त्र हैं ? अध्यापक – नहीं! वे तो द्रव्यानुयोग के शास्त्र हैं; क्योंकि षट् द्रव्य, सप्त तत्त्व आदि का तथा स्व पर भेद-विज्ञान आदि का वर्णन तो द्रव्यानुयोग में होता है। छात्र - इसमें भी करणानुयोग के समान केवलज्ञानगम्य कथन होता होगा ? २० Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008325
Book TitleVitrag Vigyana Pathmala 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1997
Total Pages51
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Education, Spiritual, & Philosophy
File Size719 KB
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