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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates प्रश्न - १. जीव और प्रजीव तत्त्व के सम्बन्ध में इस जीव ने किस प्रकार की भूल की है ? २. आधार उपयोग रूप, चिन्मूरत बिनमूरत अनूप। काल, इनतें न्यारी है जीव चाल । मैं चेतन को पुद्गल नभ धर्म अधर्म ताको न जान विपरीत मान, करि करें देह में निज पिछान। मैं सुखी - दुःखी रंक - राव, मेरे धन गृह गोधन प्रभाव। मेरे सुत-तिय मैं सबल - दीन, बेरूप - सुभग मूरख - प्रवीन। तन उपजत अपनी उपज जान, तन नशत आपको नाश मान । रागादि प्रकट जे दुःख दैन, तिनहीं को सेवत गिनत चैन । शुभ - अशुभ बंध के फल मँझार, रति- प्ररति करें निजपद विसार । आतम-हित हेतु विराग - ज्ञान, ते लखेँ आपको कष्टदान । रोकी न चाह निज शक्ति खोय, शिवरूप निराकुलता न जोय। (छह: ढ़ाला, दूसरी ढाल, छन्द २ से ७ तक ) ४. 66 ३. ' तत्त्वज्ञान प्राप्त करना कष्टकर हैं", क्या यह बात सही है? यदि नहीं, तो क्यों ? ५. 66 हम शुभ- भाव करेंगे तो सुखी होंगे”, ऐसा मानने में किस तत्त्व सम्बन्धी भूल हुई ? “जैसा सुख हमें है वैसा ही उससे कई गुणा मुक्त जीवों का हैं मानने में क्या बाधा है ? " १७ Please inform us of any errors on [email protected] ऐसा 66 यदि परस्पर प्रेम ( राग ) करोगे तो आनन्द में रहोगे", क्या यह मान्यता ठीक है?
SR No.008325
Book TitleVitrag Vigyana Pathmala 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1997
Total Pages51
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Education, Spiritual, & Philosophy
File Size719 KB
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