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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates जब संसार में सुख है ही नहीं तो मिलेगा कहाँ से ? अतः जो शुभाशुभ राग प्रकट दुःख का देने वाला है, उसे सुखकर मानना ही आस्त्रवतत्त्व सम्बन्धी भूल है। बन्धतत्त्व सम्बन्धी भूल यह जीव शुभ कर्मों के फल में राग करता है और अशुभ कर्मों के फल में द्वेष करता है जबकि शुभ कर्मों का फल है भोग-सामग्री की प्राप्ति और भोग दुःखमय ही हैं, सुखमय नहीं। अतः शुभ और अशुभ दोनों ही कर्म वास्तव में संसार का कारण होने से हानिकारक हैं और मोक्ष तो शुभ-अशुभ बंध के नाश से ही होता है-यह नहीं जानता है, यही इसकी बंध तत्त्व सम्बन्धी भूल है। संवरतत्त्व सम्बन्धी भूल आत्मज्ञान और आत्मज्ञान सहित वैराग्य संवर है और वे ही आत्मा को सुखी करने वाले हैं, उन्हें कष्टदायी मानता है। तात्पर्य यह है कि सम्यग्ज्ञान की प्राप्ति और वैराग्य की प्राप्ति कष्टदायक है – ऐसा मानता है। यह उसे पता ही नहीं कि ज्ञान और वैराग्य की प्राप्ति आनंदमयी होती है, कष्टमयी नहीं। उन्हें कष्ट देने वाला मानना ही संवरतत्त्व सम्बन्धी भूल है। निर्जरातत्त्व सम्बन्धी भूल __ आत्मज्ञानपूर्वक इच्छाओं का अभाव ही निर्जरा है और वही आनंदमय है। उसे न जानकर एवं आत्मशक्ति को भूलकर इच्छाओं की पूर्ति में ही सुख मानता है और इच्छाओं के प्रभाव को सुख नहीं मानता है, यही इसकी निर्जरातत्त्व सम्बन्धी भूल है। मोक्षतत्त्व सम्बन्धी भूल___ मुक्ति में पूर्ण निराकुलता रूप सच्चा सुख है, उसे तो जानता नहीं और भोग सम्बन्धी सुख को ही सुख मानता है और मुक्ति में भी इसी जाति के सुख की कल्पना करता है, यही इसकी मोक्षतत्त्व सम्बन्धी भूल है। __ जब तक इन सातों तत्त्व सम्बन्धी भूलों को न निकाले, तब तक इसको सच्चा सुख प्राप्त करने का मार्ग प्राप्त नहीं हो सकता है। १६ Please inform us of any errors on [email protected]
SR No.008325
Book TitleVitrag Vigyana Pathmala 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1997
Total Pages51
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Education, Spiritual, & Philosophy
File Size719 KB
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