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पाठ २
आत्मा और परमात्मा
मुनिराज योगीन्दु
( व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व) अपभ्रंश के महाकवि अध्यात्मवेत्ता योगीन्द के जीवन के बारे में विशेष जानकारी अभी तक उपलब्ध नहीं है। उनके नाम का भी कई तरह से उल्लेख मिलता है, जैसे योगीन्दु, योगीन्द्र। पर अपभ्रंश के जोइन्दु का संस्कृतानुवाद योगीन्दु ठीक बैठता है, योगीन्द्र नहीं।
योगीन्दु के समय के बारे में भी विभिन्न मत हैं। इनका काल छठवीं शताब्दी से लेकर ग्यारहवीं शताब्दी तक माना जाता है।
आपके ग्रन्थों पर कुन्दकुन्द का प्रभाव स्पष्ट लक्षित होता है। योगीन्दु ने कुन्दकुन्द से बहुत कुछ लिया है। पूज्यपाद के समाधिशतक और योगीन्दु के परमात्मप्रकाश में भी घनिष्ठ समानता दिखाई देती है।
उनके द्वारा बनाये गये परमात्मप्रकाश (परमप्पयासु) और योगसार ( जोगसारु ) ही उनकी कीर्ति के अक्षय भंडार हैं। उन ग्रन्थों में उन्होंने अध्यात्म के गूढ़ तत्वों को सहज और सरल लोक-भाषा में जनता के समक्ष रखा है। प्रस्तुत पाठ उक्त ग्रन्थों के आधार पर लिखा गया है।
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