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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates [ परिशिष्टम्] ६१३ (मालिनी) अविचलितचिदात्मन्यात्मनात्मानमात्मन्यनवरतनिमग्नं धारयद् ध्वस्तमोहम्। उदितममृतचन्द्रज्योतिरेतत्समन्ताज्ज्वलतु विमलपूर्ण निःसपत्नस्वभावम्।। २७६ ।। श्लोकार्थ:- [अविचलित-चिदात्मनि आत्मनि आत्मानम् आत्मना अनवरतनिमग्नं धारयत् ] जो अचल-चेतनास्वरूप आत्मामें आत्माको अपने आप ही निरंतर निमग्न रखती है (अर्थात् प्राप्त किये स्वभावको कभी नहीं छोड़ती), [ध्वस्त-मोहम्] जिसने मोहका (अज्ञानांधकारका) नाश किया है, [ निःसपत्नस्वभावम् ] जिसका स्वभाव निःसपत्न ( प्रतिपक्षी कर्मोंसे रहित) है, [विमल-पूर्ण] जो निर्मल है और जो पूर्ण है; ऐसी [ एतत् उदितम् अमृतचन्द्र-ज्योतिः] यह उदय को प्राप्त अमृतचंद्रज्योति (-अमृतमय चंद्रमाके समान ज्योति, ज्ञान, आत्मा) [ समन्तात् ज्वलतु] सर्वतः जाज्वल्यमान रहो। भावार्थ:-जिसका न तो मरण होता है और न जिससे दूसरे का नाश होता है वह अमृत है; और जो अत्यंत स्वादिष्ट ( –मीठा) होता है उसे लोग रूढ़िसे अमृत कहते हैं। यहाँ ज्ञानको-आत्माको-अमृतचंद्रज्योति (-अमृतमय चंद्रमाके समान ज्योति) कहा है, जो कि लुप्तोपमालंकार है; क्योंकि 'अमृतचन्द्रवत् ज्योतिः 'का समास करने पर 'वत्' का लोप होकर 'अमृतचन्द्रज्योतिः' होता है। (यदि ‘वत्' शब्द न रखकर 'अमृतचंद्ररूप ज्योति' अर्थ किया जाये तो भेदरूपक अलंकार होता है। और 'अमृतचंद्रज्योति' ही आत्माका नाम कहा जाय तो अभेदरूपक अलंकार होता है।) आत्माको अमृतमय चंद्रमाके समान कहने पर भी, यहाँ कहे गये विशेषणों के द्वारा आत्माका चंद्रमा के साथ व्यतिरेक भी है; क्योंकि--'ध्वस्तमोह' विशेषण अज्ञान-अंधकारका दूर होना बतलाता है, 'विमलपूर्ण' विशेषण लांछनरहितता तथा पूर्णता बतलाता है, निःसपत्नस्वभाव' विशेषण राहुबिंबसे तथा बादल आदिसे आच्छादित न होना बतलाता है, और 'समंतात् ज्वलतु' सर्व क्षेत्र और सर्व कालमें प्रकाश करना बतलाता है; चंद्रमा ऐसा नहीं है। _इस श्लोकमें टीकाकार आचार्यदेवने अपना 'अमृतचंद्र' नाम भी बताया है। समास बदलकर अर्थ करनेसे 'अमृतचंद्र' के और 'अमृतचंद्रज्योति' के अनेक अर्थ होते हैं जो कि यथासंभव जानने चाहिये। २७६ । Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com
SR No.008303
Book TitleSamaysara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorParmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Spiritual
File Size3 MB
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