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Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates सर्वविशुद्धज्ञान अधिकार
कैश्चित्तु पर्यायैर्विनश्यति नैव कैश्चित्तु जीवः । यस्मात्तस्माद्वेदयते स वा अन्यो वा नैकान्तः।। ३४६ ।। यश्चैव करोति य चैव न वेदयते यस्य एष सिद्धान्तः । सजीवो ज्ञातव्यो मिथ्यादृष्टिरनार्हतः ।। ३४७ ।। अन्यः करोत्यन्यः परिभुंक्ते यस्य एष सिद्धान्तः। सजीवो ज्ञातव्यो मिथ्यादृष्टिरनार्हतः ।। ३४८ ।।
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यतो हि प्रतिसमयं सम्भवदगुरुलधुगुणपरिणामद्वारेण क्षणिकत्वादचलितचैतन्यान्वयगुणद्वारेण नित्यत्वाच्च जीवः कैश्चित्पर्यायैर्विनश्यति, कैश्चित्तु न विनश्यतीि द्विस्वभावो जीवस्वभावः । ततो य एव करोति स एवान्यो वा वेदयते, य एव वेदयते स एवान्यो वा करोतीति नास्त्येकान्तः। एवमनेकान्तेऽपि यस्तत्क्षणवर्तमानस्यैव
[यस्मात् ] क्योंकि [ जीवः ] जीव [ कैश्चित् पर्यायैः तु ] कितनी ही पर्यायोंसे [ विनश्यति ] नष्ट होता है [ तु] और [ कैश्चित् ] कितनी ही पर्यायोंसे [न एव ] नष्ट नहीं होता है, [तस्मात् ] इसलिये [ सः वा वेदयते ] ' ( जो करता है) वही भोगता है' [अन्य: वा ] अथवा 'दूसरा ही भोगता है' [न एकान्तः ] ऐसा एकांत नहीं है (- स्याद्वाद है)।
' [ यः च एव करोति ] जो करता है [ सः च एव न वेदयते ] वही नहीं भोगता' [एषः यस्य सिद्धान्तः ] ऐसा जिसका सिद्धांत है, [ स जीवः ] वह जीव [मिथ्यादृष्टिः] मिथ्यादृष्टि [ अनार्हतः ] अनार्हत ( - अर्हत्के मतको न माननेवाला ) [ ज्ञातव्य: ] जानना चाहिये ।
' [ अन्यः करोति ] दूसरा करता है [ अन्य: परिभुंक्ते ] और दूसरा भोगता है' [ एषः यस्य सिद्धान्तः ] ऐसा जिसका सिद्धांत है, [ स जीवः ] वह जीव [ मिथ्यादृष्टि: ] मिथ्यादृष्टि, [ अनार्हतः ] अनार्हत ( - अजैन ) [ सज्ञातव्यः ] जानना चाहिये ।
टीका:-जीव, प्रतिसमय संभवते ( - होनेवाले) अगुरुलघुगुणके परिणाम द्वारा क्षणिक होनेसे और अचलित चैतन्यके अन्वयरूप गुण द्वारा नित्य होनेसे, कितनी ही पर्यायोंसे विनाशको प्राप्त होता है और कितनी ही पर्यायोंसे विनाशको नहीं प्राप्त होता है - इसप्रकार दो स्वभाववाला जीवस्वभाव है; इसलिये ' जो करता है वही भोगता है' अथवा 'दूसरा ही भोगता है', 'जो भोगता है वही करता है' अथवा 'दूसरा ही करता है - ऐसा एकांत नहीं है । इसप्रकार अनेकांत होनेपर भी, 'जो ( पर्याय ) उससमय होती है, उसी को
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