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समयसार
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केहिंचि दु पज्जएहिं विणस्सए णेव केहिंचि दु जीवो। जम्हा तम्हा कुव्वदि सो वा अण्णो व णेयंतो।।३४५ ।। केहिंचि दु पज्जएहिं विणस्सए णेव केहिंचि दु जीवो। जम्हा तम्हा वेददि सो वा अण्णो व णेयंतो।।३४६ ।। जो चेव कुणदि सो चिय ण वेदए जस्स एस सिद्धंतो। सो जीवो णादव्वो मिच्छादिट्ठी अणारिहदो।।३४७ ।। अण्णो करेदि अण्णो परिभुजदि जस्स एस सिद्धंतो। सो जीवो णादव्वो मिच्छादिट्ठी अणारिहदो।।३४८ ।।
कैश्चित्तु पर्यायैर्विनश्यति नैव कैश्चित्तु जीवः। यस्मात्तस्मात्करोति स वा अन्यो वा नैकान्तः।। ३४५ ।।
पर्याय कुछसे नष्ट जीव, कुछसे न जीव विनष्ट है। इससे करे हैं वो ही या को अन्य नहीं एकांत है ।।३४५।। पर्याय कुछसे नष्ट जीव , कुछसे न जीव विनष्ट है । यों जीव वेदै वो ही या को अन्य नहीं एकांत है ।। ३४६ ।। जीव जो करै वह भोगता नहिं-जिसका यह सिद्धांत है। अर्हतके मतका नहीं वो जीव मिथ्यादृष्टि है ।। ३४७।। जीव अन्य करता, अन्य वेदे-जिसका यह सिद्धांत है।
अहँतके मतका नहीं वो जीव मिथ्यादृष्टि है ।।३४८। गाथार्थ:- [ यस्मात् ] क्योंकि [जीवः] जीव [ कैश्चित् पर्यायैः तु] कितनी ही पर्यायोंसे [ विनश्यति] नष्ट होता है [ तु] और [ कैश्चित् ] कितनी ही पर्यायोंसे [न एव ] नष्ट नहीं होता, [ तस्मात् ] इसलिये [ सः वा करोति ] ( जो भोगता है) वही करता है' [ अन्यः वा ] अथवा 'दूसरा ही करता है' [ न एकान्तः ] ऐसा एकांत नहीं है ( –स्याद्वाद है)।
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