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Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates सर्वविशुद्धज्ञान अधिकार
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जीवो हि तावत्क्रमनियमितात्मपरिणामैरुत्पद्यमानो जीव एव, नाजीवः, एवमजीवोऽपि क्रमनियमितात्मपरिणामैरुत्पद्यमानोऽजीव एव, न जीवः, सर्वद्रव्याणां स्वपरिणामैः सह तादात्म्यात् कङ्कणादिपरिणामैः काञ्चनवत् । एवं हि जीवस्य स्वपरिणामैरुत्पद्यमानस्याप्यजीवेन सह कार्यकारणभावो न सिध्यति, सर्वद्रव्याणां द्रव्यान्तरेण सहोत्पाद्योत्पादकभावाभावात् तदसिद्धौ चाजीवस्य जीवकर्मत्वं न सिध्यति; तदसिद्धौ च कर्तृकर्मणोरनन्यापेक्षसिद्धत्वात् जीवस्याजीवकर्तृत्वं न सिध्यति। अतो जीवोऽकर्ता अवतिष्ठते।
[ सिद्धिः ] कर्ताकर्मकी सिद्धि [ न दृश्यते ] नहीं देखी जाती।
टीका:- प्रथम तो जीव क्रमबद्ध ऐसे अपने परिणामोंसे उत्पन्न होता हुआ जीव ही है, अजीव नहीं; इसीप्रकार अजीव भी क्रमबद्ध अपने परिणामोंके उत्पन्न होता हुआ अजीव ही है, जीव नहीं; क्योंकि जैसे ( कंकण आदि परिणामोंसे उत्पन्न होने वाले ऐसे ) सुवर्णका कंकण आदि परिणामोंके साथ तादात्म्य है उसीप्रकार सर्व द्रव्योंका अपने परिणामोंके साथ तादात्म्य है। इसप्रकार जीव अपने परिणामोंसे उत्पन्न होता है तथापि उसका अजीवके साथ कार्यकारणभाव सिद्ध नहीं होता, क्योंकि सर्व द्रव्योंका अन्य द्रव्यके साथ उत्पाद्य-उत्पादक भावका अभाव है; उसके (कार्यकारणभावके ) सिद्ध न होने पर, अजीवके जीवका कर्मत्व सिद्ध नहीं होता; और उसके (-अजीवके जीवका कर्मत्व) सिद्ध न होने पर, कर्ता-कर्मकी अन्यनिरपेक्षतया (-अन्यद्रव्यसे निरपेक्षतया, स्वद्रव्यमें ही ) सिद्धि होनेसे, जीवके अजीवका कर्तृत्व सिद्ध नहीं होता। इसलिये जीव अकर्ता सिद्ध होता है।
भावार्थ:-सर्व द्रव्योंके परिणाम भिन्न भिन्न हैं। सभी द्रव्य अपने अपने परिणामोंके कर्ता हैं; वे उन परिणामोंके कर्ता हैं, वे परिणाम उनके कर्म हैं । निश्चयसे किसी का किसी के साथ कर्ताकर्मसंबंध नहीं है। इसलिये जीव अपने परिणामोंका ही कर्ता है, और अपने परिणाम कर्म हैं। इसीप्रकार अजीव अपने परिणामोंका ही कर्ता है, और अपने परिणाम कर्म हैं। इसीप्रकार जीव दूसरे के परिणामोंका अकर्ता है।
' इसप्रकार जीव अकर्ता है तथापि उसे बंध होता है यह अज्ञानकी महिमा है ' इस अर्थका कलशरूप काव्य कहते हैं :
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