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समयसार
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ण कुदोचि वि उप्पण्णो जम्हा कज्जं ण तेण सो आदा। उप्पादेदि ण किंचि वि कारणमवि तेण ण स होदि।।३१० ।। कम्मं पडुच्च कत्ता कत्तारं तह पडुच्च कम्माणि। उप्पज्जंति य णियमा सिद्धी दु ण दीसदे अण्णा।। ३११ ।।
द्रव्यं यदुत्पद्यते गुणैस्तत्तैर्जानीह्यनन्यत्। यथा कटकादिभिस्तु पर्यायैः कनकमनन्यदिह।।३०८ ।। जीवस्याजीवस्य तु ये परिणामास्तु दर्शिताः सूत्रे। तं जीवमजीवं वा तैरनन्यं विजानीहि।। ३०९ ।। न कुतश्चिदप्युत्पन्नो यस्मात्कार्य न तेन स आत्मा। उत्पादयति न किञ्चिदपि कारणमपि तेन न स भवति।।३१० ।। कर्म प्रतीत्य कर्ता कर्तारं तथा प्रतीत्य कर्माणि। उत्पद्यन्ते च नियमात्सिद्धिस्तु न दृश्यतेऽन्या।। ३११ ।।
उपजै न आत्मा कोईसे, इससे न आत्मा कार्य है । उपजावता नहीं कोई को, इससे न कारण भी बने ।। ३१०।। रे! कर्म-आश्रित होय कर्ता, कर्म भी करतार के ।
आश्रित हुवे उपजे नियमसे , अन्य नहीं सिद्धि दिखे ।। ३११ ।।
गाथार्थ:- [ यत् द्रव्यं ] जो द्रव्य [ गुणैः ] जिन गुणोंसे [ उत्पद्यते ] उत्पन्न होता है [ तैः ] उन गुणोंसे [ तत् ] उसे [अनन्यत् जानीहि ] अनन्य जानो; [ यथा] जैसे [इह ] जगतमें [कटकादिभिः पर्यायैः तु] कड़ा इत्यादि पर्यायोंसे [ कनकम् ] सुवर्ण [ अनन्यत् ] अनन्य है वैसे।।
[जीवस्य अजीवस्य तु] जीव और अजीवके [ ये परिणामाः तु] जो परिणाम [ सूत्रे दर्शिताः ] सूत्रमें बताये हैं, [ तैः ] उन परिणामोंसे [ तं जीवम् अजीवम् वा] उस जीव अथवा अजीव को [ अनन्यं विजानीहि ] अनन्य जानो।
[यस्मात् ] क्योंकि [ कुतश्चित् अपि] किसी से भी [न उत्पन्नः] उत्पन्न नहीं हुआ [ तेन ] इसलिये [ सः आत्मा] वह आत्मा [ कार्य न ] (किसीका) कार्य नहीं है, [किञ्चित् अपि] और किसीको [ न उत्पादयति ] उत्पन्न नहीं करता [ तेन ] इसलिये [ सः ] वह [ कारणम् अपि] ( किसीका ) कारण भी [ न भवति] नहीं है।
[नियमात् ] नियमसे [कर्म प्रतीत्य] कर्मके आश्रयसे (-कर्मका अवलंबन लेकर) [ कर्ता] कर्ता होता है; [ तथा च ] और [ कर्तारं प्रतीत्य ] कर्ताके आश्रयसे [ कर्माणि उत्पद्यन्ते ] कर्म उत्पन्न होते हैं; [ अन्या तु] अन्य किसी प्रकार से
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