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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates समयसार ४२२ बन्धानां च स्वभावं विज्ञायात्मनः स्वभावं च। बन्धेषु यो विरज्यते स कर्मविमोक्षणं करोति।। २९३ ।। य एव निर्विकारचैतन्यचमत्कारमात्रमात्मस्वभावं तद्विकारकारकं बन्धानां च स्वभावं विज्ञाय, बन्धेभ्यो विरमति, स एव सकलकर्ममोक्षं कुर्यात्। एतेनात्मबन्धयोर्विधाकरणस्य मोक्षहेतुत्वं नियम्यते। केनात्मबन्धौ द्विधा क्रियेते इति चेत् जीवो बंधो य तहा छिज्जंति सलक्खणेहिं णियएहिं। पण्णाछेदणएण दु छिण्णा णाणत्तमावण्णा।। २९४ ।। जीवो बन्धश्च तथा छिद्येते स्वलक्षणाभ्यां नियताभ्याम्। प्रज्ञाछेदनकेन तु छिन्नौ नानात्वमापन्नौ।। २९४ ।। गाथार्थ:- [ बन्धानां स्वभावं च ] बंधोंके स्वभावको [ आत्मनः स्वभावं च] और आत्माके स्वभावको [विज्ञाय ] जानकर [बन्धेषु ] बंधोंके प्रति [यः] जो [विरज्यते ] विरक्त होता है, [ सः ] वह [ कर्मविमोक्षणं करोति ] कर्मोंसे मुक्त होता है। टीका:-जो, निर्विकारचैतन्यचमत्कारमात्र आत्मस्वभावको और उस ( आत्माके) विकार करनेवाले बंधके स्वभावको जानकर, बंधोंसे विरक्त होता है, वही समस्त कर्मोंसे मुक्त होता है। इस (कथनसे) से, ऐसा नियम किया जाता है कि आत्मा और बंधका द्विधाकरण (पृथक्करण) ही मोक्षका कारण है। (अर्थात् आत्मा और बंधको भिन्न भिन्न करना ही मोक्षका कारण है ऐसा निर्णीत किया जाता है)। 'आत्मा और बंध किस (साधन) के द्वारा द्विधा (अलग ) किये जाते हैं ?' ऐसा प्रश्न होने पर उत्तर देते हैं: छेदन करो जीव बंधका तुम नियत निज निज चिह्नसे । प्रज्ञा-छैनीसे छेदतें दोनों पृथक हो जाये है ।। २९४ ।। गाथार्थ:- [जीव: च तथा बन्धः] जीव तथा बंध [नियताभ्याम् स्वलक्षणाभ्या] नियत स्वलक्षणोंसे ( अपने-अपने निश्चित लक्षणोंसे ) [ छिद्येते] छेदे जाते हैं; [ प्रज्ञाछेदनकेन ] प्रज्ञारूपी छैनीके द्वारा [ छिन्नौ तु] छेदे जाने पर [ नानात्वम् आपन्नौ ] वे नानापन को प्राप्त होते हैं अर्थात् अलग हो जाते हैं। Please inform us of any errors on [email protected]
SR No.008303
Book TitleSamaysara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorParmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Spiritual
File Size3 MB
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