________________
Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates
बंध अधिकार
३९५
मिथ्यादर्शनं, विविक्तात्मानाचरणादस्ति चाचारित्रम्। [यत्पुनः नारकोऽहमित्याद्यध्यवसानं तदपि, ज्ञानमयत्वेनात्मनः सदहेतुकज्ञायकैकभावस्य कर्मोदयजनितानां नारकादिभावानां च विशेषाज्ञानेन विविक्तात्माज्ञानादस्ति तावदज्ञानं, विविक्तात्मादर्शनादस्ति च मिथ्यादर्शनं, विविक्तात्मानाचरणा-दस्ति चाचारित्रम्।] यत्पुनरेष धर्मो ज्ञायत इत्याद्यध्यवसानं तदपि, ज्ञानमयत्वेनात्मनः सदहेतुकज्ञानैकरूपस्य ज्ञेयमयानां धर्मादिरूपाणां च विशेषाज्ञानेन विविक्तात्माज्ञानात्, अस्ति तावदज्ञानं, विविक्तात्मादर्शनादस्ति च मिथ्यादर्शनं, विविक्तात्मानाचरणादस्ति चाचारित्रम्। ततो बन्धनिमित्तान्येवैतानि समस्तान्यध्यवसानानि। येषामेवैतानि न विद्यन्ते त एव मुनिकुञ्जराः केचन, सदहेतुकज्ञप्त्येकक्रियं, सदहेतुकज्ञायकैकभावं, सदहेतुकज्ञानैकरूपं च विविक्तमात्मानं जानन्तः, सम्यक्पश्यन्तोऽनुचरन्तश्च , स्वच्छस्वच्छन्दोद्यदमन्दान्त
( वह अध्यवसान) मिथ्यादर्शन है और भिन्न आत्माका अनाचरण होनेसे ( वह अध्यवसान) अचारित्र है। [और 'मैं नारक हूँ' इत्यादि जो अध्यवसान है वह अध्यवसानवाले जीवको भी, ज्ञानमयपनेके सद्भावसे सत्रुप अहेतुक ज्ञायक ही जिसका एक भाव है ऐसा आत्माका और कर्मोदयजनित नारक आदि भावोंका विशेष न जानने के कारण भिन्न आत्माका अज्ञान होनेसे , वह अध्यवसान प्रथम तो अज्ञान है, भिन्न आत्माका अदर्शन होनेसे ( वह अध्यवसान) मिथ्यादर्शन है और भिन्न आत्माका अनाचरण होनेसे ( वह अध्यवसान) अचारित्र है।] और यह धर्मद्रव्य ज्ञात होता है' इत्यादि जो अध्यवसान है उस अध्यवसानवाले जीवको भी, "ज्ञानमयपनेके सद्भावसे सप अहेतुक ज्ञान ही जिसका एक रूप है ऐसे आत्माका और ज्ञेयमय धर्मादिक रूपोंका विशेष न जानने के कारण भिन्न आत्माका अज्ञान होनेसे, वह अध्यवसान प्रथम तो अज्ञान है, भिन्न आत्माका अदर्शन होनेसे ( वह अध्यवसान) मिथ्यादर्शन है और भिन्न आत्माका अनाचरण होनेसे ( वह अध्यवसान) अचारित्र है। इसलिये यह समस्त अध्यवसान बंधके ही निमित्त हैं।
मात्र जिनके यह अध्यवसान विद्यमान नहीं हैं वे ही कोई (विरले ) मुनिकुंजर (मुनिवरों), सत्प अहेतुक ज्ञप्ति ही जिसकी एक क्रिया है, सत्प अहेतुक ज्ञायक ही जिसके एक भाव है और सत्रुप अहेतुक ज्ञान ही जिसका एक रूप है ऐसे भिन्न आत्माको ( –सर्व अन्यद्रव्यभावोंसे भिन्न आत्माको) जानते हुए, सम्यक् प्रकारसे देखते ( श्रद्धा करते) हुए और अचरण करते हुए, स्वच्छ और स्वच्छंदतया उदयमान (स्वाधीनतया प्रकाशमान )
* आत्मा ज्ञानमय है इसलिये सत्प
अहेतुक ज्ञान ही जिसका एक रूप है।
Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com