________________
Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates
समयसार
३८२
यो हि भ्रियते जीवति वा, दुःखितो भवति सुखितो भवति वा, स खलु स्वकर्मोदयेनैव, तदभावे तस्य तथा भवितुमशक्यत्वात्। ततः मयायं मारितः, अयं जीवितः, अयं दुःखितः कृतः, अयं सुखितः कृतः इति पश्यन् मिथ्यादृष्टिः।
(अनुष्टुभ् )
मिथ्यादृष्टे: स एवास्य बन्धहेतुर्विपर्ययात्। य एवाध्यवसायोऽयमज्ञानात्माऽस्य दृश्यते।। १७० ।।
टीका:-जो मरता है या जीता है, दुःखी होता है या सुखी होता है, यह वास्तवमें अपने कर्मोदयसे ही होता है, क्योंकि अपने कर्मोदय के उदयके अभावमें उसका वैसा होना ( मरना, जीना, दुःखी या सुखी होना) अशक्य है। इसलिये ऐसा देखने वाला अर्थात् मानने वाला मिथ्यादृष्टि है कि 'मैंने इसे मारा, इसे जिलाया, इसे दुःखी किया, इसे सुखी किया'।
भावार्थ:-कोई किसी के मारे नहीं मरता और जिलाए नहीं जीता तथा किसीके सुखी-दुःखी किये सुखी-दुःखी नहीं होता; इसलिये जो मारने, जिलाने आदिका अभिप्राय करता है वह मिथ्यादृष्टि ही है-यह निश्चयका वचन है। यहाँ व्यवहारनय गौण है।
अब आगेके कथनका सूचकरूप श्लोक कहते हैं:
श्लोकार्थ:- [अस्य मिथ्यादृष्टे: ] मिथ्यादृष्टिके [ यः एव अयम् अज्ञानात्मा अध्यवसायः दृश्यते ] जो यह अज्ञानस्वरूप अध्यवसाय दिखाई देता है [ सः एव ] वह अध्यवसाय ही, [विपर्ययात् ] विपर्ययस्वरूप (मिथ्या) होनेसे , [अस्य बन्धहेतुः ] उस मिथ्यादृष्टिके बंधका कारण है।
भावार्थ:-मिथ्या अभिप्राय ही मिथ्यात्व है, और वही बंधका कारण है-ऐसा जानना चाहिए। १७०।
अब, यह कहते हैं कि यह अज्ञानमय अध्यवसाय ही बंधका कारण है:
* जो परिणाम मिथ्या अभिप्राय सहित हो [-स्वपरके एकत्वके अभिप्रायसे सहित हो] अथवा वैभाविक हो उस परिणाम के लिये अध्यवसाय शब्द प्रयुक्त किया जाता है। [ मिथ्या] निश्चय अथवा, [ मिथ्या ] अभिप्रायके अर्थमें भी अध्यवसाय शब्द प्रयुक्त होता है।
Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com