________________
Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates
निर्जरा अधिकार
अप्पाणमयाणंतो अणप्पयं चावि सो अयाणंतो। कह होदि सम्मदिट्ठी जीवाजीवे अयाणंतो।। २०२ ।।
परमाणुमात्रमपि खलु रागादीनां तु विद्यते यस्य। नापि स जानात्यात्मानं तु सर्वागमधरोऽपि।। २०१ ।। आत्मानमजानन् अनात्मानं चापि सोऽजानन्। कथं भवति सम्यग्दृष्टिर्जीवाजीवावजानन्।। २०२ ।।
यस्य रागादीनामज्ञानमयानां भावानां लेशस्यापि सद्भावोऽस्ति स श्रुतकेवलिकल्पोऽपि ज्ञानमयस्य भावस्याभावादात्मानं न जानाति। यस्त्वात्मानं न जानाति सोऽनात्मानमपि न जानाति, स्वरूपपररूपसत्तासत्ताभ्यामेकस्य वस्तुनो निश्चीयमानत्वात्। ततो य आत्मानात्मानौ न जानाति स जीवाजीवौ न जानाति। यस्तु जीवाजीवौ न जानाति स सम्यग्दृष्टिरेव न भवति। ततो रागी ज्ञानाभावान्न भवति सम्यग्दृष्टिः।
नहिं जानता जहँ आत्मको, अनआत्म भी नहिं जानता। वो क्योंहि होय सुदृष्टि जो, जीव-अजीवको नहिं जानता ? ।।२०२।।
गाथार्थ:- [ खलु] वास्तवमें [यस्य] जिस जीवके [ रागादीनां तु परमाणुमात्रम् अपि] परमाणुमात्र-लेशमात्र-भी रागादिक [ विद्यते] वर्तता है [ सः] वह जीव [ सर्वागमधरः अपि] भले ही सर्वागमका धारी (समस्त आगमोंका पढ़ा हुआ) हो तथापि [ आत्मानं तु] आत्माको [न अपि जानाति] नहीं जानता; [च] और [ आत्मानम् ] आत्माको [अजानन् ] न जानता हुआ [ सः] वह [अनात्मानं अपि] अनात्माको ( परको) भी [ अजानन् ] नहीं जानता; [ जीवाजीवौ] इसप्रकार जो जीव और अजीवको [ अजानन् ] नहीं जानता वह [ सम्यग्दृष्टि: ] सम्यग्द,ष्टि [ कथं भवति] कैसे हो सकता है ?
टीका:-जिसके रागादि अज्ञानमय भावोंके लेशमात्रका भी सद्भाव है वह भले ही श्रुतकेवली जैसा हो तथापि वह ज्ञानमय भावोंके अभाव के कारण आत्माको नहीं जानता; और जो आत्माको नहीं जानता वह अनात्माको भी नहीं जानता क्योंकि स्वरूपसे सत्ता और पररूपसे असत्ता-इन दोनों के द्वारा एक वस्तुका निश्चय होता है; (जिसे अनात्माका-रागका निश्चय हुआ हो उसे अनात्मा और आत्मा-दोनोंका निश्चय होना चाहिये।) इसप्रकार जो आत्मा और अनात्माको नहीं जानता वह जीव और अजीवको नहीं जानता; तथा जो जीव-अजीवको नहीं जानता वह सम्यग्दृष्टि ही नहीं है। इसलिये रागी (जीव) ज्ञानके अभावके कारण सम्यग्दृष्टि नहीं होता।
Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com