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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates आस्रव अधिकार २७५ __ (अनुष्टुभ् ) रागद्वेषविमोहानां ज्ञानिनो यदसम्भवः। तत एव न बन्धोऽस्य ते हि बन्धस्य कारणम्।। ११९ ।। रागो दोसो मोहो य आसवा णत्थि सम्मदिट्ठिस्स। तम्हा आसवभावेण विणा हेदू ण पचया होंति।।१७७ ।। हेदू चदुव्वियप्पो अट्ठवियप्पस्स कारणं भणिदं। तेसिं पि य रागादी तेसिमभावे ण बज्झंति।।१७८ ।। रागो द्वेषो मोहश्च आस्रवा न सन्ति सम्यग्दृष्टेः। तस्मादास्रवभावेन विना हेतवो न प्रत्यया भवन्ति।।१७७ ।। हेतुश्चतुर्विकल्पः अष्टविकल्पस्य कारणं भणितम्। तेषामपि च रागादयस्तेषामभावे न बध्यन्ते।। १७८ ।। अभाव है। यहाँ समस्त रागद्वेषमोहका अभाव बुद्धिपूर्वक रागद्वषमोहकी अपेक्षासे समझना चाहिये। ११८ । अब इसी अर्थ को दृढ़ करनेवाली आगामी दो गाथाओंका सूचक श्लोक कहते हैं: श्लोकार्थ:- [ यत् ] क्योंकि [ ज्ञानिनः रागद्वेषविमोहानां असम्भवः ] ज्ञानियोंके रागद्वेषमोहका असंभव है [ ततः एव ] इसलिये [ अस्य बन्धः न] उनके बंध नहीं है; [हि ] कारण कि [ ते बन्धस्य कारणम् ] वे ( रागद्वेषमोह) ही बंधका कारण है। ११९ । अब इस अर्थकी समर्थक दो गाथाएँ कहते हैं :--- नहिं रागद्वेष, न मोह-ये आस्रव नहीं सुदृष्टिके । इससे ही आस्रवभाव बिन, प्रत्यय नहीं हेतू बने ।। १७७।। हेतू चतुर्विध कर्म अष्ट प्रकारका कारण कहा। उनका हि रागादिक कहा, रागादि नहिं वहाँ बंध ना ।।१७८ ।। गाथार्थ:- [ रागः ] राग , [ द्वेषः ] द्वेष [च मोहः ] और मोह- [ आस्रवाः ] यह आस्रव [ सम्यग्दृष्टे:] सम्यग्दृष्टिके [न सन्ति ] नहीं होते [तस्मात् ] इसलिये [ आस्रवभावेन विना] आस्रवभावके बिना [ प्रत्ययाः ] द्रव्यप्रत्यय [ हेतवः ] कर्मबंधके कारण [ न भवन्ति ] नहीं होते। Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com
SR No.008303
Book TitleSamaysara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorParmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Spiritual
File Size3 MB
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