________________
२७४
Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates
समयसार
( मालिनी )
विजहति न हि सत्तां प्रत्ययाः पूर्वबद्धा: समयमनुसरन्तो यद्यपि द्रव्यरूपाः। तदपि सकलरागद्वेषमोहव्युदासादवतरति न जातु ज्ञानिनः कर्मबन्धः।। ११८ ।।
अविरतसम्यग्दृष्टि इत्यादिके जो चारित्रमोहका उदय विद्यमान है उसमें जिस प्रकार जीव युक्त होता है उसीप्रकार उसे नवीन बंध होता है; इसलिये गुणस्थानोंके वर्णनमें अविरतसम्यग्दृष्टि आदि गुणस्थानोंमें अमुक अमुक प्रकृतियोंका बंध कहा है, किन्तु यह बंध अल्प है इसलिये उसे सामान्य संसारकी अपेक्षासे बंधमें नहीं गिना जाता। सम्यग्दृष्टि चारित्रमोहके उदयमें स्वामित्वभावसे युक्त नहीं होता, वह मात्र अस्थिरतारूपसे युक्त होता है; और अस्थिरतारूप युक्तता निश्चयदृष्टिमें युक्तता ही नहीं है। इसलिये सम्यग्दृष्टिके रागद्वेषमोहका अभाव कहा गया है। जबतक जीव कर्मका स्वामित्व रखकर कर्मोदयमें परिणमित होता तबतक ही वह कर्मका कर्ता कहलाता है; उदयका ज्ञातादृष्टा होकर परके निमित्तसे मात्र अस्थिरतारूप परिणमित होता है तब कर्ता नहीं किन्तु ज्ञाता ही है। इस अपेक्षासे सम्यग्दृष्टि होनेके बाद चारित्रमोहके उदयरूप परिणमित होते हुए भी उसे ज्ञानी और अबंधक कहा गया है। जबतक मिथ्यात्वका उदय है और उसमें युक्त होकर जीव रागद्वेषमोहभावसे परिणमित होता है तबतक ही उसे अज्ञानी और बंधक कहा जाता है। इसप्रकार ज्ञानी - अज्ञानी और बंध–अबंधका यह भेद जानना । और शुद्ध स्वरूपमें लीन रहनेके अभ्यास द्वारा केवलज्ञान प्रगट होनेसे जब जीव साक्षात् संपूर्णज्ञानी होता है तब वह सर्वथा निरास्त्रव हो जाता है यह पहले कहा जा चुका है।
अब इस अर्थका कलशरूप काव्य कहते हैं :--
श्लोकार्थ :- [ यद्यपि ] यद्यपि [ समयम् अनुसरन्तः ] अपने अपने समयका अनुसरण करने वाले ( अपने अपने समय में उदय में आने वाले ) [ पूर्वबद्धा: ] पूर्वबद्ध (पहले अज्ञान–अवस्थामें बँधे हुए ) [ द्रव्यरूपाः प्रत्ययाः] द्रव्यरूप प्रत्यय [सत्तां ] अपनी सत्ताको [ न हि विजहति ] नहीं छोड़ते ( वे सत्तामें रहते हैं ), [ तदपि ] तथापि [ सकलरागद्वेषमोहव्युदासात्] सर्व रागद्वेषमोहका अभाव होनेसे [ ज्ञानिनः ] ज्ञानीके [ कर्मबन्धः ] कर्मबंध [ जातु ] कदापि [ अवतरति न ] अवतार नहीं धरता – नहीं होते।
भावार्थ:-ज्ञानीके भी पूर्व अज्ञान - अवस्थामें बाँधे हुए द्रव्यास्रव सत्ता-अवस्था में विद्यमान हैं और वे अपने उदयकालमें उदयमें आते रहते हैं । किन्तु वे द्रव्यास्रव ज्ञानीके कर्मबंधके कारण नहीं होते, क्योंकि ज्ञानीके समस्त रागद्वेषमोहभावों का
Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com