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आस्रव अधिकार
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यतः सदवस्थायां तदात्वपरिणीतबालस्त्रीवत् पूर्वमनुपभोग्यत्वेऽपि विपाकावस्थायां प्राप्तयौवनपूर्वपरिणीतस्त्रीवत् उपभोग्यत्वात् उपयोगप्रायोग्यं पुद्गलकर्मद्रव्यप्रत्ययाः सन्तोऽपि कर्मोदयकार्यजीवभावसद्भावादेव बध्नन्ति। ततो ज्ञानिनो यदि द्रव्यप्रत्ययाः पूर्वबद्बाः सन्ति, सन्तु; तथापि स तु निरास्रव एव, कर्मोदयकार्यस्य रागद्वेषमोहरूपस्यास्रवभावस्याभावे द्रव्यप्रत्ययानाम-बन्धहेतुत्वात्।
टीका:-जैसे पहले तो तत्कालकी परिणीत बाल स्त्री अनुपभोग्य है किन्तु यौवनको प्राप्त वह पहलेकी परिणीत स्त्री यौवन-अवस्थामें उपभोग्य होती है और जिसप्रकार उपभोग्य हो तद्नुसार वह पुरुषके रागभावके कारण ही, पुरुषको बंधन करती है-वशमें करती है, इसीप्रकार जो पहले तो सत्ता-अवस्थामें अनुपभोग्य हैं किन्तु विपाक-अवस्थामें उपभोगयोग्य होते हैं ऐसे पुद्गलकर्मरूप द्रव्यप्रत्यय होनेपर भी वे जिसप्रकार उपभोग्य हों तद्नुसार ( अर्थात् उपयोगके प्रयोगानुसार), कर्मोदय के कार्यरूप जीवभावके सद्भावके कारण ही, बंधन करते हैं। इसलिये ज्ञानीके यदि पूर्वबद्ध द्रव्यप्रत्यय विद्यमान हैं, तो भले रहें; तथापि वह (ज्ञानी) तो निरास्त्रव ही है, क्योंकि कर्मोदयका कार्य जो रागद्वेषमोहरूप आस्रवभाव है उसके अभावमें द्रव्यप्रत्यय बंधके कारण नहीं हैं। (जैसे यदि पुरुषको रागभाव हो तो ही यौवनावस्थाको प्राप्त स्त्री उसे वश कर सकती है इसीप्रकार जीवको आस्रवभाव हो तब ही उदयप्राप्त द्रव्यप्रत्यय नवीन बंध कर सकते हैं।)
भावार्थ:-द्रव्यास्त्रवोंके उदय और जीवके रागद्वेषमोहभावका निमित्तनैमित्तिकभाव है। द्रव्यास्त्रवोंके उदयमें युक्त हुवे बिना जीवके भावास्रव नहीं हो सकता और इसलिये बंध भी नहीं हो सकता। द्रव्यात्रवोंका उदय होनेपर जीव जैसे उसमें युक्त हो अर्थात् जिसप्रकार उसे भावात्रव हो उसीप्रकार द्रव्यास्त्रव नवीन बंधके कारण होते हैं। यदि जीव भावास्त्रव न करे तो उसे नवीन बंध नहीं होता।
सम्यग्दृष्टिके मिथ्यात्वका और अनंतानुबंधी कषायका उदय न होनेसे उसे उस प्रकारके भावास्त्रव तो होते ही नहीं और मिथ्यात्व तथा अनंतानुबंधी कषाय संबंधी बंध भी नहीं होता। (क्षायिक सम्यग्दृष्टिके सत्तामेंसे मिथ्यात्वका क्षय होते समय ही अनंतानुबंधी कषायका तथा तत्संबंधी अविरति और योगभावका भी क्षय हो गया होता है इसलिये उसे उसप्रकारका बंध नहीं होता; औपशमिक सम्यग्दृष्टिके मिथ्यात्व तथा अनंतानबंधी कषाय मात्र उपशममें सत्तामें ही होनेसे सत्तामें रहा हआ द्रव्य उदयमें आये बिना उसप्रकारके बंधका कारण नहीं होता; और क्षायोपशमिक सम्यग्दृष्टिको भी सम्यक्त्वमोहनीयके अतिरिक्त छह प्रकृतियाँ विपाकमें ( उदयमें) नहीं आती इसलिये उसप्रकारका बंध नहीं होता।)
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