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पुण्य-पाप अधिकार
२५३
चारित्तपडिणिबद्धं कसायं जिणवरेहि परिकहियं। तस्सोदयेण जीवो अचरित्तो होदि णादव्वो।। १६३ ।।
सम्यक्त्वप्रतिनिबद्धं मिथ्यात्वं जिनवरैः परिकथितम्। तस्योदयेन जीवो मिथ्यादृष्टिरिति ज्ञातव्यः।। १६१ ।। ज्ञानस्य प्रतिनिबद्धं अज्ञानं जिनवरैः परिकथितम्। तस्योदयेन जीवोऽज्ञानी भवति ज्ञातव्यः।। १६२ ।। चारित्रप्रतिनिबद्धः कषायो जिनवरैः परिकथितः। तस्योदयेन जीवोऽचारित्रो भवति ज्ञातव्यः।। १६३ ।।
सम्यक्त्वस्य मोक्षहेतोः स्वभावस्य प्रतिबन्धकं किल मिथ्यात्वं, तत्तु स्वयं कमैव , तदुदयादेव ज्ञानस्य मिथ्यादृष्टित्वम्। ज्ञानस्य मोक्षहेतोः स्वभावस्य प्रतिबन्धकं किलाज्ञानं, तत्तु स्वयं कर्मैव , तदुदयादेव ज्ञानस्याज्ञानित्वम्। चारित्रस्य मोक्षहेतो: स्वभावस्य प्रतिबन्धकः किल कषायः, स तु स्वयं कर्मैव,
चारित्र प्रतिबंध करम, जिनने कषायोंको कहा। उसके उदयसे जीव चारित्रहीन हो यह जानना ।। १६३।।
गाथार्थ:- [सम्यक्त्वप्रतिनिबद्धं ] सम्यक्त्वको रोकनेवाला [ मिथ्यात्वं ] मिथ्यात्व है ऐसा [ जिनवरैः] जिनवरोंने [ परिकथितम् ] कहा है; [तस्य उदयेन] उसके उदयसे [ जीवः ] जीव [ मिथ्यादृष्टि: ] मिथ्यादृष्टि होता है [इति ज्ञातव्यः ] ऐसा जानना चाहिये। [ ज्ञानस्य प्रतिनिबद्धं ] ज्ञानको रोकनेवाला [ अज्ञानं] अज्ञान है ऐसा [ जिनवरैः ] जिनवरोंने [ परिकथितम् ] कहा है; [ तस्य उदयेन ] उसके उदयसे [ जीवः ] जीव [ अज्ञानी ] अज्ञानी [ भवति ] होता है [ ज्ञातव्यः ] ऐसा जानना चाहिये। [ चारित्रप्रतिनिबद्धः ] चारित्रको रोकनेवाला [कषायः] कषाय है ऐसा [जिनवरैः] जिनवरोंने [ परिकथितः] कहा है; [ तस्य उदयेन] उसके उदयसे [ जीवः ] जीव [ अचारित्रः ] अचारित्रवान [ भवति ] होता है [ ज्ञातव्यः ] ऐसा जानना चाहिये।
__टीका:-सम्यक्त्व जो कि मोक्षके कारणरूप स्वभावरूप है उसे रोकनेवाला मिथ्यात्व है; वह ( मिथ्यात्व) तो स्वयं कर्म ही है, उसके उदयसे ही ज्ञानके मिथ्यादृष्टिपना होता है। ज्ञान जो कि मोक्षका कारणरूप स्वभाव है उसे रोकनेवाला अज्ञान है; वह तो स्वयं कर्म ही है, उसके उदयसे ही ज्ञानके अज्ञानीपना होता है। चारित्र जो कि मोक्षका कारणरूप स्वभाव है उसे रोकनेवाला कषाय है; वह तो स्वयं कर्म ही है,
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