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(अनुष्टुभ् ) मोक्षहेतुतिरोधानाद्बन्धत्वात्स्वयमेव च। मोक्षहेतुतिरोधायिभावत्वात्तन्निषिध्यते।। १०८ ।
अथ कर्मणो मोक्षहेतुतिरोधानकरणं साधयति
वत्थस्स सेदभावो जह णासेदि मलमेलणासत्तो । मिच्छत्तमलोच्छण्णं तह सम्मत्तं खु णादव्वं ।। १५७ ।। वत्थस्स सेदभावो जह णासेदि मलमेलणासत्तो । अण्णाणमलोच्छण्णं तह णाणं होदि णादव्वं ।। १५८ ।। वत्थस्स सेदभावो जह णासेदि मलमेलणासत्तो । कसायमलोच्छण्णं तह चारित्तं पि णादव्वं ।। १५९ ।।
अब आगामी कथनका सूचक श्लोक कहते हैं :---
श्लोकार्थ:- [ मोक्षहेतुतिरोधानात् ] कर्म मोक्षके कारणोंका तिरोधान करने वाला है, और [ स्वयम् एव बन्धत्वात् ] वह स्वयं ही बंधस्वरूप है [च] तथा [ मोक्षहेतुतिरोधायिभावत्वात् ] मोक्षके कारणोंका तिरोधायिभावस्वरूप (तिरोधानकर्ता) है इसीलिये [ तत् निषिध्यते ] उसका निषेध किया गया है। १०८ ।
अब पहले, यह सिद्ध करते हैं कि कर्म मोक्षके कारणोंका तिरोधान करनेवाला
मलमिलनलिप्त जु नाश पावे, श्वेतपन ज्यों वस्त्रका । मिथ्यात्वमलके लेपसे, सम्यक्त्व त्यों ही जानना ।। १५७।।
मलमिलनलिप्त जु नाश पावे, श्वेतपन ज्यों वस्त्रका । अज्ञानमलके लेपसे, सद्ज्ञान त्यों ही जानना ।। १५८ ।।
मलमिलनलिप्त जु नाश पावे, श्वेतपन ज्यों वस्त्रका । चारित्र पावे नाश लिप्त कषाय मलसे जानना ।। १५९ ।।
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