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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates पुण्य-पाप अधिकार २४३ परमट्ठम्हि दु अठिदो जो कुणदि तवं वदं च धारेदि। तं सव्वं बालतवं बालवदं बेंति सव्वण्हू।। १५२ ।। परमार्थे त्वस्थितः यः करोति तपो व्रतं च धारयति। तत्सर्वे बालतपो बालव्रतं ब्रुवन्ति सर्वज्ञः ।। १५२ ।। ज्ञानमेव मोक्षस्य कारणं विहितं, परमार्थभूतज्ञानशून्यस्याज्ञान-कुतयोव्रततपः कर्मणोः बन्धहेतुत्वाद्वालव्यपदेशेन प्रतिषिद्धत्वे सति तस्यैव मोक्षहेतुत्वात्। अथ ज्ञानाज्ञाने मोक्षबन्धहेतू नियमयति वदणियमाणि धरता सीलाणि तहा तवं च कुव्वंता। परमट्ठबाहिरा जे णिव्वाणं ते ण विदंति।।१५३ ।। परमार्थमे नहिं तिष्ठकर, जो तप करें, व्रतको घरें । तप सर्व उसका बाल अरु, व्रत बाल जिनवरने कहे ।। १५२।। गाथार्थ:- [ परमार्थ तु] परमार्थमें [अस्थितः ] अस्थित [ यः ] जो जीव [ तपः करोति] तप करता है [च ] और [ व्रतं धारयति] व्रत धारण करता है, [ तत्सर्व] उसके उन सब तप और व्रतको [ सर्वज्ञाः ] सर्वज्ञदेव [ बालतपः ] बालतप और [ बालव्रतं] बालव्रत [ ब्रुवन्ति ] कहते हैं। टीका:-आगममें भी ज्ञानको ही मोक्षका कारण कहा है (ऐसा सिद्ध होता है); क्योंकि जो जीव परमार्थभूत ज्ञानसे रहित है उसके, अज्ञानपूर्वक किये गये व्रत, तप आदि कर्म बंधके कारण हैं इसलिये उन कर्मोंको 'बाल' संज्ञा देकर उनका निषेध किया जानेसे ज्ञान ही मोक्षका कारण सिद्ध होता है। भावार्थ:-ज्ञानके बिना किये गये तप, व्रतादिको सर्वज्ञदेवने बालतप तथा बालव्रत (अर्थात् अज्ञानतप तथा अज्ञानव्रत) कहा है, इसलिये मोक्षका कारण ज्ञान ही है। अब यह कहते हैं कि ज्ञान ही मोक्षका हेतु है और अज्ञान ही बंधका हेतु है यह नियम है : व्रतनियमको धारे भले, तपशीलको भी आचरे । परमार्थसे जो बाह्य वो, निर्वाणप्राप्ति नहिं करे ।। १५३ ।। Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008303
Book TitleSamaysara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorParmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Spiritual
File Size3 MB
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