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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates समयसार २४२ परमार्थः खलु समयः शुद्धो यः केवली मुनिर्ज्ञानी। तस्मिन् स्थिताः स्वभावे मुनयः प्राप्नुवन्ति निर्वाणम्।। १५१ ।। ज्ञानं हि मोक्षहेतुः, ज्ञानस्य शुभाशुभकर्मणोरबन्धहेतुत्वे सति मोक्षहेतुत्वस्य तथोपपत्तेः। तत्तु सकलकर्मादिजात्यन्तरविविक्तचिज्जातिमात्र: परमार्थ आत्मेति यावत्। स तु युगपदेकीभावप्रवृत्तज्ञानगमनमयतया समयः, सकलनयपक्षासङ्कीर्णेकज्ञानतया शुद्ध:, केवलचिन्मात्रवस्तुतया केवली, मननमात्रभावतया मुनिः, स्वयमेव ज्ञानतया ज्ञानी, स्वस्य भवनमात्रतया स्वभाव: स्वतश्चितो भवनमात्रतया सद्भावो वेति शब्दभेदेऽपि न च वस्तुभेदः। अथ ज्ञानं विधापयति गाथार्थ:- [ खलु ] निश्चयसे [ य:] जो [ परमार्थः ] परमार्थ ( परम पदार्थ) है, [ समय: ] समय है, [शुद्धः ] शुद्ध है, [ केवली ] केवली है, [ मुनिः ] मुनि है, [ज्ञानी] ज्ञानी है, [ तस्मिन् स्वभावे ] उस स्वभावमें [ स्थिताः] स्थित [ मुनयः ] मुनि [ निर्वाणं] निर्वाणको [ प्राप्नुवन्ति ] प्राप्त होते हैं। टीका:-ज्ञान मोक्षका कारण है, क्योंकि वह शुभाशुभ कर्मके बंधका कारण नहीं होनेसे उसके इसप्रकार मोक्षका कारणपना बनता है। वह ज्ञान, समस्त कर्म आदि अन्य जातियोंसे भिन्न चैतन्य-जातिमात्र परमार्थ ( –परम पदार्थ) है-आत्मा है। वह (आत्मा) एक ही साथ एकरूपसे प्रवर्तमान ज्ञान और गमन (परिणमन) स्वरूप होनेसे समय है. समस्त नयपक्षोंसे अमिश्रित एक ज्ञानस्वरूप होनेसे शुद्ध है, केवल चिन्मात्र वस्तुस्वरूप होनेसे केवली है, केवल मननमात्र (ज्ञानमात्र) भावस्वरूप होनेसे मुनि है, स्वयं ही ज्ञानस्वरूप होनेसे ज्ञानी है, 'स्व' का भवनमात्रस्वरूप होनेसे स्वभाव है अथवा स्वतः चैतन्यका भवनमात्रस्वरूप होनेसे सद्भाव है (क्योंकि जो स्वतः होता है वह सत्-स्वरूप ही होता है)। इसप्रकार शब्दभेद होनेपर भी वस्तुभेद नहीं है ( -यद्यपि नाम भिन्न भिन्न हैं तथापि वस्तु एक ही है)। भावार्थ:-मोक्षका उपादान तो आत्मा ही है। परमार्थ से आत्माका ज्ञानस्वभाव है; जो ज्ञान है सो आत्मा है और आत्मा है सो ज्ञान है। इसलिये ज्ञानको ही मोक्षका कारण कहना योग्य है। अब, यह बतलाते हैं कि आगममें भी ज्ञानको ही मोक्षका कारण कहा है: * भवन= होना; Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008303
Book TitleSamaysara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorParmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Spiritual
File Size3 MB
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