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समयसार
२२२
(उपजाति) एकस्य वेद्यो न तथा परस्य चिति द्वयोविति पक्षपातौ। यस्तत्त्ववेदी च्युतपक्षपातस्तस्यास्ति नित्यं खलु चिच्चिदेव।। ८८ ।।
(उपजाति) एकस्य भातो न तथा परस्य चिति द्वयोाविति पक्षपातौ। यस्तत्त्ववेदी च्युतपक्षपातस्तस्यास्ति नित्यं खलु चिच्चिदेव।। ८९ ।।
[ यः तत्त्ववेदी च्युतपक्षपातः] जो तत्त्ववेत्ता पक्षपातरहित है [ तस्य] उसे [ नित्यं] निरंतर [ चित् ] चित्स्वरूप जीव [ खलु चित् एव अस्ति ] चित्स्वरूप ही है। ८७।
श्लोकार्थ:- [ वेद्यः ] जीव वेद्य ( –वेदनेयोग्य, ज्ञातहोनेयोग्य ) है [एकस्य ] ऐसा एक नयका पक्ष है और [ न तथा] जीव वेद्य नहीं है [ परस्य ] ऐसा दूसरे नयका पक्ष है; [इति] इसप्रकार [ चिति] चित्स्वरूप जीवके सम्बन्धमें [द्वयोः] दो नयोंके [ द्वौ पक्षपातौ ] दो पक्षपात हैं। [ यः तत्त्ववेदी च्युतपक्षपातः ] जो तत्त्ववेत्ता पक्षपातरहित है [ तस्य ] उसे [ नित्यं] निरंतर [ चित् ] चित्स्वरूप जीव [ खलु चित् एव अस्ति ] चित्स्वरूप ही है। ८८।।
श्लोकार्थ:- [भातः ] जीव 'भात' (प्रकाशमान अर्थात् वर्तमान प्रत्यक्ष ) है [ एकस्य ] ऐसा एक नयका पक्ष है और [ न तथा ] जीव 'भात' नहीं है [ परस्य ] ऐसा दूसरे नयका पक्ष है; [इति] इसप्रकार [ चिति] चित्स्वरूप जीवके सम्बन्धमें [द्वयोः ] दो नयोंके [ द्वौ पक्षपातौ] दो पक्षपात है। [ यः तत्त्ववेदी च्युतपक्षपातः] जो तत्त्ववेत्ता पक्षपातरहित है [ तस्य ] उसे [ नित्यं] निरंतर [ चित् ] चित्स्वरूप जीव [खलु चित् एव अस्ति ] चित्स्वरूप ही है। ८९ ।
भावार्थ:-बद्ध अबद्ध , मूढ़ अमूढ़ , रागी अरागी, द्वेषी अद्वेषी, कर्ता अकर्ता, भोक्ता अभोक्ता, जीव अजीव, सूक्ष्म स्थूल , कारण अकारण, कार्य अकार्य, भाव अभाव, एक अनेक, सान्त अनन्त, नित्य अनित्य , वाच्य अवाच्य, नाना अनाना, चेत्य अचेत्य, दृश्य अदृश्य, वेद्य अवेद्य, भात अभात इत्यादि नयोंके पक्षपात हैं। जो पुरुष नयोंके कथनानुसार यथायोग्य विवक्षापूर्वक तत्त्वका-वस्तुस्वरूपका निर्णय करके नयोंके पक्षपातको छोड़ता है उसे चित्स्वरूप जीवका चित्स्वरूप अनुभव होता है।
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