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कर्ता-कर्म अधिकार
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(उपजाति) एकस्य नाना न तथा परस्य चिति द्वयोविति पक्षपातौ। यस्तत्त्ववेदी च्युतपक्षपातस्तस्यास्ति नित्यं खलु चिच्चिदेव।। ८५ ।।
(उपजाति) एकस्य चेत्यो न तथा परस्य चिति द्वयोाविति पक्षपातौ। यस्तत्त्ववेदी च्युतपक्षपातस्तस्यास्ति नित्यं खलु चिच्चिदेव।। ८६ ।।
(उपजाति) एकस्य दृश्यो न तथा परस्य चिति द्वयोाविति पक्षपातौ। यस्तत्त्ववेदी च्युतपक्षपात
स्तस्यास्ति नित्यं खलु चिच्चिदेव।। ८७ ।। [ तस्य ] उसे [ नित्यं ] निरंतर [ चित् ] चित्स्वरूप जीव [ खलु चित् एव अस्ति] चित्स्वरूप ही है। ८४।
श्लोकार्थ:- [ नाना ] जीव नानारूप है [ एकस्य ] ऐसा एक नयका पक्ष है और [न तथा ] जीव नानारूप नहीं है [ परस्य ] ऐसा दूसरे नयका पक्ष है; [इति] इसप्रकार [ चिति] चित्स्वरूप जीवके सम्बन्धमें [ द्वयोः ] दो नयोंके [ द्वौ पक्षपातौ] दो पक्षपात हैं। [यः तत्त्ववेदी च्युतपक्षपातः] जो तत्त्ववेत्ता पक्षपातरहित है [ तस्य ] उसे [ नित्यं ] निरंतर [ चित् ] चित्स्वरूप जीव [ खलु चित् एव अस्ति ] चित्स्वरूप ही है। ८५।
श्लोकार्थ:- [चेत्यः] जीव चेत्य (-जाननेयोग्य ) है [ एकस्य ] ऐसा एक नयका पक्ष है और [ न तथा] जीव चेत्य नहीं है [ परस्य ] ऐसा दूसरे नयका पक्ष है; [इति] इसप्रकार [ चिति] चित्स्वरूप जीवके सम्बन्धमें [द्वयोः] दो नयोंके [ द्वौ पक्षपातौ] दो पक्षपात हैं। [ यः तत्त्ववेदी च्युतपक्षपातः ] जो तत्त्ववेत्ता पक्षपातरहित है [तस्य] उसे [ नित्यं ] निरंतर [ चित् ] चित्स्वरूप जीव [ खलु चित् एव अस्ति ] चित्स्वरूप ही है। ८६।।
श्लोकार्थ:- [दृश्यः] जीव दृश्य (-देखनेयोग्य ) है [ एकस्य ] ऐसा एक नयका पक्ष है और [न तथा ] जीव दृश्य नहीं है [ परस्य ] ऐसा दूसरे नयका पक्ष है; [ इति] इसप्रकार [ चिति] चित्स्वरूप जीवके सम्बन्धमें [द्वयोः ] दो नयोंके [ द्वौ पक्षपातौ ] दो पक्षपात हैं।
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