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समयसार
२२०
(उपजाति) एकस्य सान्तो न तथा परस्य चिति द्वयोविति पक्षपातौ। यस्तत्त्ववेदी च्युतपक्षपातस्तस्यास्ति नित्यं खलु चिच्चिदेव।। ८२ ।।
(उपजाति) एकस्य नित्यो न तथा परस्य चिति द्वयोविति पक्षपातौ। यस्तत्त्ववेदी च्युतपक्षपातस्तस्यास्ति नित्यं खलु चिच्चिदेव।। ८३ ।।
(उपजाति) एकस्य वाच्यो न तथा परस्य चिति द्वयोाविति पक्षपातौ। यस्तत्त्ववेदी च्युतपक्षपातस्तस्यास्ति नित्यं खलु चिच्चिदेव।। ८४ ।।
[ खलु चित् एव अस्ति ] चित्स्वरूप ही है। ८१।
श्लोकार्थ:- [ सान्तः] जीव सांत (-अंत सहित) है [ एकस्य ] ऐसा एक नयका पक्ष है और [न तथा ] जीव सांत नहीं [ परस्य ] ऐसा दूसरे नयका पक्ष है; [इति] इसप्रकार [ चिति] चित्स्वरूप जीवके सम्बन्धमें [द्वयोः ] दो नयोंके [ द्वौ पक्षपातौ] दो पक्षपात हैं। [यः तत्त्ववेदी च्युतपक्षपात:] जो तत्त्ववेत्ता पक्षपातरहित है [ तस्य ] उसे [ नित्यं ] निरंतर [ चित् ] चित्स्वरूप जीव [खलु चित् एव अस्ति ] चित्स्वरूप ही है। ८२।
श्लोकार्थ:- [ नित्यः ] जीव नित्य है [ एकस्य ] ऐसा एक नयका पक्ष है और [न तथा] जीव नित्य नहीं [ परस्य ] ऐसा दूसरे नयका पक्ष है; [इति] इसप्रकार [चिति] चित्स्वरूप जीवके सम्बन्धमें [द्वयोः] दो नयोंके [ द्वौ पक्षपातौ] दो पक्षपात हैं। [ यः तत्त्ववेदी च्युतपक्षपातः ] जो तत्त्ववेत्ता पक्षपातरहित है [ तस्य ] उसे [ नित्यं ] निरंतर [ चित् ] चित्स्वरूप जीव [ खलु चित् एव अस्ति] चित्स्वरूप ही है। ८३।।
श्लोकार्थ:- [ वाच्यः ] जीव वाच्य ( अर्थात् वचनसे कहा जा सके ऐसा) है [ एकस्य ] ऐसा एक नयका पक्ष है और [न तथा] जीव वाच्य (-वचनगोचर) नहीं है [ परस्य ] ऐसा दूसरे नयका पक्ष है; [इति] इसप्रकार [ चिति] चित्स्वरूप जीवके सम्बन्धमें [द्वयोः ] दो नयोंके [द्वौ पक्षपातौ] दो पक्षपात हैं। [यः तत्त्ववेदी च्युतपक्षपातः ] जो तत्त्ववेत्ता पक्षपातरहित है
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