________________
Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates
कर्ता-कर्म अधिकार
२१९
(उपजाति) एकस्य कार्यं न तथा परस्य चिति द्वयोाविति पक्षपातौ। यस्तत्त्ववेदी च्युतपक्षपातस्तस्यास्ति नित्यं खलु चिच्चिदेव।। ७९ ।।
(उपजाति) एकस्य भावो न तथा परस्य चिति द्वयोविति पक्षपातौ। यस्तत्त्ववेदी च्युतपक्षपातस्तस्यास्ति नित्यं खलु चिच्चिदेव।। ८० ।।
(उपजाति) एकस्य चेको न तथा परस्य चिति द्वयोविति पक्षपातौ। यस्तत्त्ववेदी च्युतपक्षपातस्तस्यास्ति नित्यं खलु चिच्चिदेव।। ८१ ।।
[ खलु चित् एव अस्ति ] चित्स्वरूप ही है। ७८ ।
श्लोकार्थ:- [ कार्य] जीव कार्य है [ एकस्य ] ऐसा एक नयका पक्ष है और [न तथा] जीव कार्य नहीं है [ परस्य] ऐसा दूसरे नयका पक्ष है; [इति] इसप्रकार [ चिति] चित्स्वरूप जीवके सम्बन्धमें [ द्वयोः] दो नयोंके [ द्वौ पक्षपातौ ] दो पक्षपात हैं। [ यः तत्त्ववेदी च्युतपक्षपातः] जो तत्त्ववेत्ता पक्षपातरहित है [ तस्य ] उसे [ नित्यं] निरंतर [ चित् ] चित्स्वरूप जीव [ खलु चित् एव अस्ति ] चित्स्वरूप ही है। ७९।
श्लोकार्थ:- [ भावः ] जीव भाव है ( अर्थात् भावरूप है ) [ एकस्य ] ऐसा एक नयका पक्ष है और [न तथा ] जीव भाव नहीं है ( अर्थात् अभावरूप है) [ परस्य] ऐसा दूसरे नयका पक्ष है; [इति] इसप्रकार [ चिति] चित्स्वरूप जीवके सम्बन्धमें [द्वयोः ] दो नयोंके [द्वौ पक्षपातौ] दो पक्षपात हैं। [यः तत्त्ववेदी च्युतपक्षपातः] जो तत्त्ववेत्ता पक्षपातरहित है [ तस्य ] उसे [ नित्यं] निरंतर [ चित् ] चित्स्वरूप जीव [ खलु चित् एव अस्ति ] चित्स्वरूप ही है। ८०।
श्लोकार्थ:- [एक: ] जीव एक है [ एकस्य ] ऐसा एक नयका पक्ष है [च] और [न तथा ] जीव एक नहीं है ( –अनेक है) [ परस्य ] ऐसा दूसरे नयका पक्ष है; [इति] इसप्रकार [ चिति] चित्स्वरूप जीवके सम्बन्धमें [द्वयोः ] दो नयोंके [द्वौ पक्षपातौ ] दो पक्षपात हैं। [ यः तत्त्ववेदी च्युतपक्षपात:] जो तत्त्ववेत्ता पक्षपातरहित है [ तस्य ] उसे [ नित्यं ] निरंतर [ चित् ] चित्स्वरूप जीव
Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com