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समयसार
२१८
( उपजाति) एकस्य जीवो न तथा परस्य चिति द्वयोविति पक्षपातौ। यस्तत्त्ववेदी च्युतपक्षपातस्तस्यास्ति नित्यं खलु चिचिदेव।। ७६ ।।
(उपजाति) एकस्य सूक्ष्मो न तथा परस्य चिति द्वयोाविति पक्षपातौ। यस्तत्त्ववेदी च्युतपक्षपातस्तस्यास्ति नित्यं खलु चिच्चिदेव।। ७७ ।।
(उपजाति) एकस्य हेतुर्न तथा परस्य चिति द्वयोाविति पक्षपातौ। यस्तत्त्ववेदी च्युतपक्षपातस्तस्यास्ति नित्यं खलु चिचिदेव।। ७८ ।।
[नित्यं ] निरंतर [ चित् ] चित्स्वरूप जीव [ खलु चित् एव अस्ति ] चित्स्वरूप ही है। ७५।
श्लोकार्थ:- [ जीवः ] जीव जीव है [ एकस्य ] ऐसा एक नयका पक्ष है और [न तथा] जीव जीव नहीं है [ परस्य ] ऐसा दूसरे नयका पक्ष है; [ इति] इसप्रकार [ चिति] चित्स्वरूप जीवके सम्बन्धमें [ द्वयोः ] दो नयोंके [ द्वौ पक्षपातौ ] दो पक्षपात हैं। [यः तत्त्ववेदी च्युतपक्षपातः ] जो तत्त्ववेत्ता पक्षपातरहित है [ तस्य ] उसे [ नित्यं] निरंतर [ चित् ] चित्स्वरूप जीव [ खलु चित् एव अस्ति ] चित्स्वरूप ही है। ७६।
श्लोकार्थ:- [ सूक्ष्मः ] जीव सूक्ष्म है [ एकस्य ] ऐसा एक नयका पक्ष है और [न तथा] जीव सूक्ष्म नहीं है [परस्य ] ऐसा दूसरे नयका पक्ष है; [इति] इसप्रकार [चिति] चित्स्वरूप जीवके सम्बन्धमें [ द्वयोः] दो नयोंके [ द्वौ पक्षपातौ] दो पक्षपात हैं। [यः तत्त्ववेदी च्युतपक्षपातः ] जो तत्त्ववेत्ता पक्षपातरहित है [ तस्य ] उसे [ नित्यं ] निरंतर [ चित् ] चित्स्वरूप जीव [ खलु चित् एव अस्ति ] चित्स्वरूप ही है। ७७।
श्लोकार्थ:- [ हेतुः ] जीव हेतु (कारण) है [ एकस्य ] ऐसा एक नयका पक्ष है और [ न तथा ] जीव हेतु (कारण) नहीं [ परस्य ] ऐसा दूसरे नयका पक्ष है; [इति] इसप्रकार [ चिति] चित्स्वरूप जीवके सम्बन्धमें [द्वयोः ] दो नयोंके [द्वौ पक्षपातौ] दो पक्षपात हैं। [यः तत्त्ववेदी च्युतपक्षपात: ] जो तत्त्ववेत्ता पक्षपातरहित है [ तस्य ] उसे [ नित्यं ] निरंतर [ चित् ] चित्स्वरूप जीव
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