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( उपजाति) एकस्य दुष्टो न तथा परस्य चिति द्वयोर्द्वाविति पक्षपातौ । यस्तत्त्ववेदी च्युतपक्षपात
स्तस्यास्ति नित्यं खलु चिच्चिदेव ।। ७३ ।। ( उपजाति)
एकस्य कर्ता न तथा परस्य चिति द्वयोर्द्वाविति पक्षपातौ । यस्तत्त्ववेदी च्युतपक्षपात
स्तस्यास्ति नित्यं खलु चिच्चिदेव ।। ७४ ।। ( उपजाति)
एकस्य भोक्ता न तथा परस्य चिति द्वयोर्द्वाविति पक्षपातौ। यस्तत्त्ववेदी च्युतपक्षपातस्तस्यास्ति नित्यं खलु चिचिदेव।। ७५ ।।
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[ खलु चित् एव अस्ति ] चित्स्वरूप ही है । ७२।
श्लोकार्थ :- [ दुष्टः ] जीव द्वेषी है [ एकस्य ] ऐसा एक नयका पक्ष है और [न तथा ] जीव द्वेषी नहीं है [ परस्य ] ऐसा दूसरे नयका पक्ष है; [ इति ] इसप्रकार [चिति ] चित्स्वरूप जीवके सम्बन्धमें [ द्वयोः ] दो नयोंके [ द्वौ पक्षपातौ ] दो पक्षपात हैं। [ यः तत्त्ववेदी च्युतपक्षपातः ] जो तत्त्ववेत्ता पक्षपातरहित है [ तस्य ] उसे [ नित्यं ] निरंतर [ चित् ] चित्स्वरूप जीव [ खलु चित् एव अस्ति ] चित्स्वरूप ही है । ७३ ।
श्लोकार्थ :- [ कर्ता ] जीव कर्ता है [ एकस्य ] ऐसा एक नयका पक्ष है और [न तथा ] जीव कर्ता नहीं है [ परस्य ] ऐसा दूसरे नयका पक्ष है; [ इति ] इसप्रकार [चिति ] चित्स्वरूप जीवके सम्बन्धमें [ द्वयोः ] दो नयोंके [ द्वौ पक्षपातौ ] दो पक्षपात हैं । [ य: तत्ववेदी च्युतपक्षपातः ] जो तत्त्ववेत्ता पक्षपातरहित है [ तस्य ] उसे [ नित्यं ] निरंतर [ चित् ] चित्स्वरूप जीव [ खलु चित् एव अस्ति ] चित्स्वरूप ही है । ७४ ।
श्लोकार्थ :- [ भोक्ता ] जीव भोक्ता
[ एकस्य ] ऐसा एक नयका पक्ष है और [न तथा ] जीव भोक्ता नहीं है [ परस्य ] ऐसा दूसरे नयका पक्ष है; [ इति ] इसप्रकार [चिति ] चित्स्वरूप जीवके सम्बन्धमें [ द्वयोः ] दो नयोंके [ द्वौ पक्षपातौ ] दो पक्षपात हैं। [ यः तत्त्ववेदी च्युतपक्षपातः ] जो तत्त्ववेत्ता पक्षपातरहित है [ तस्य ] उसे
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