________________
Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates
कर्ता-कर्म अधिकार
२११
तदा पुद्गलद्रव्यजीवयोः सहभूतहरिद्रासुधयोरिव द्वयोरपि कर्मपरिणामापत्तिः। अथ चैकस्यैव पुद्गलद्रव्यस्य भवति कर्मत्वपरिणामः, ततो रागादिजीवाज्ञानपरिणामाद्धेतो: पृथग्भूत एव पुद्गलकर्मणः परिणामः।
पुद्गलद्रव्यात्पृथग्भूत एव जीवस्य परिणाम:
जीवस्स दु कम्मेण य सह परिणामा हु होति रागादी। एवं जीवो कम्मं च दो वि रागादिमावण्णा।।१३९ ।। एक्कस्स दु परिणामो जायदि जीवस्स रागमादीहिं। ता कम्मोदयहेदूहिं विणा जीवस्स परिणामो।। १४० ।। जीवस्य तु कर्मणा च सह परिणामाः खलु भवन्ति रागादयः। एवं जीवः कर्म च द्वे अपि रागादित्वमापन्ने।। १३९ ।।
जैसे मिली हुई फिटकरी और हल्दीका-दोनोंका लाल रंगरूप परिणाम होता है उसीप्रकार, पुद्गल और जीवद्रव्य दोनोंके कर्मरूप परिणामकी आपत्ति आ जाये। परंतु एक पुद्गलद्रव्यके ही कर्मत्वरूप परिणाम तो होता है; इसलिये जीवका रागादिअज्ञानपरिणाम जो कि कर्मका निमित्त है उससे भिन्न ही पुद्गलकर्मका परिणाम है।
भावार्थ:-यदि यह माना जाये कि पुद्गलद्रव्य और जीवद्रव्य दोनों मिलकर कर्मरूप परिणमते हैं तो दोनों के कर्मरूप परिणाम सिद्ध हो। परंतु जीव तो कभी भी जड़ कर्मरूप नहीं परिणम सकता ; इसलिये जीवका अज्ञानपरिणाम जो कि कर्मका निमित्त है उससे अलग ही पुद्गलद्रव्यका कर्मपरिणाम है।
अब यह प्रतिपादन करते हैं कि जीवका परिणाम पुद्गलद्रव्यसे भिन्न ही है:
जीवके, करमके साथ ही, जो भाव रागादिक बने । तो कर्म अरु जीव उभय ही, रागादिपन पावें अरे! ।। १३९ ।। पर परिणमन रागादिरूप तो, होत है जीव एकके । इससे ही कर्मोदयनिमित्तसे, अलग जीव परिणाम है ।।१४०।।
गाथार्थ:- [ जीवस्य तु] यदि जीवके [ कर्मणा च सह] कर्मके साथ ही [ रागादयः परिणामाः] रागादि परिणाम [ खलु भवन्ति ] होते हैं (अर्थात् दोनों मिलकर रागादिरूप परिणमते हैं) ऐसा माना जाये एवं ] तो इसप्रकार [ जीवः कर्म च] जीव और कर्म [ द्वे अपि] दोनों [ रागादित्वम् आपन्ने] रागादिभावको प्राप्त हो जायें।
Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com