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समयसार
२१०
जीवात्पृथग्भूत एव पुद्गलद्रव्यस्य परिणामः
जइ जीवेण सह चिय पोग्गलदव्वस्स कम्मपरिणामो। एवं पोग्गलजीवा ह दो वि कम्मत्तमावण्णा।। १३७ ।। एक्कस्स दु परिणामो पोग्गलदव्वस्स कम्मभावेण। ता जीवभावहेदूहिं विणा कम्मस्स परिणामो।।१३८ ।।
यदि जीवेन सह चैव पुद्गलद्रव्यस्य कर्मपरिणामः। एवं पुद्गलजीवौ खलु द्वावपि कर्मत्वमापन्नौ।। १३७ ।। एकस्य त परिणामः पदलद्रव्यस्य कर्मभावेन। तज्जीवभावहेतुभिर्विना कर्मणः परिणामः ।। १३८ ।।
यदि पुद्गलद्रव्यस्य तन्निमित्तभूतरागाद्यज्ञानपरिणामपरिणतजीवेन सहैव कर्मपरिणामो भवतीति वितर्कः,
अब यह प्रतिपादन करते है कि पुद्गलद्रव्यका परिणाम जीव से भिन्न ही है:
जो कर्मरूप परिणाम , जीवके साथ पुद्गलका बने । तो जीव अरु पुद्गल उभय ही, कर्मपन पावें अरे! ।। १३७।। पर कर्मभावों परिणमन है, एक पुद्गलद्रव्यके । जीवभावहेतुसे अलग, तब, कर्मके परिणाम हैं ।। १३८ ।।
गाथार्थ:- [ यदि] यदि [ पुद्गलद्रव्यस्य ] पुद्गलद्रव्यका [ जीवेन सह चैव] जीवके साथ ही [ कर्मपरिणामः ] कर्मरूप परिणाम होता है (अर्थात् दोनों मिलकर ही कर्मरूपसे परिणाम होता है) ऐसा मानाजाये तो [ एवं ] इसप्रकार [ पुद्गलजीवौ द्वौ अपि] पुद्गल और जीवद्रव्य दोनों [ खलु] वास्तवमें [ कर्मत्वम् आपन्नौ ] कर्मत्वको प्राप्त हो जायें। [ तु] परंतु [ कर्मभावेन] कर्मभावसे [ परिणामः ] परिणाम तो [ पुद्गगलद्रव्यस्य एकस्य ] पुद्गलद्रव्यके एकके ही होता है [ तत्] इसलिये [ जीवभावहेतुभिः विना] जीवभावरूप निमित्तसे रहित ही अर्थात् भिन्न ही [कर्मण:] कर्मका [ परिणामः ] परिणाम है।
टीका:-यदि पुद्गलद्रव्यके, कर्मपरिणामके निमित्तभूत ऐसे रागादिअज्ञानपरिणासे परिणत जीवके साथ ही ( अर्थात् दोनों मिलकर ही), कर्मरूप परिणाम होता है-ऐसा तर्क उपस्थित किया जाये तो,
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