________________
१८४
Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates
समयसार
यथा खलु मृण्मये कलशे कर्मणि मृद्द्रव्यमृद्गुणयोः स्वरसत एव वर्तमाने द्रव्यगुणान्तरसंक्रमस्य वस्तुस्थित्यैव निषिद्धत्वादात्मानमात्मगुणं वा नाधत्ते स कलशकारः; द्रव्यान्तरसंक्रममन्तरेणान्यस्य वस्तुनः परिणमयितुमशक्यत्वात् तदुभयं तु तस्मिन्ननादधानो न तत्त्वतस्तस्य कर्ता प्रतिभाति । तथा पुद्गलमये ज्ञानावरणादौ कर्मणि पुद्गलद्रव्यपुद्गलगुणयोः स्वरसत एव वर्तमाने द्रव्यगुणान्तरसंक्रमस्य विधातुमशक्यत्वा दात्मद्रव्यमात्मगुणं वात्मा न खल्वाधत्ते; द्रव्यान्तरसंक्रममन्तरेणान्यस्य वस्तुन: परिणमयितुमशक्यत्वात्तदुभयं तु तस्मिन्ननादधानः कथं नु तत्त्वतस्तस्य कर्ता प्रतिभायात् ? ततः स्थितः खल्वात्मा पुद्गलकर्मणामकर्ता।
टीका:-जैसे – मिट्टीमय घटरूपी कर्म जो मिट्टीरूपी द्रव्यमें और मिट्टीके गुणमें निजरससे ही वर्तता है उसमें कुम्हार अपनेको या अपने गुणको डालता या मिलाता नहीं है क्योंकि ( किसी वस्तुका ) द्रव्यांतर या गुणांतररूमें संक्रमण होनेका वस्तुस्थितिसे ही निषेध है; द्रव्यांतररूपमें ( अन्यद्रव्यरूमें) संक्रमण प्राप्त किये बिना अन्य वस्तुको परिणमित करना अशक्य होनेसे, अपने द्रव्य और गुण दोनोंको उस घटरूपी कर्ममें न डालता हुआ वह कुम्हार परमार्थसे उसका कर्ता प्रतिभासित नहीं होता; इसीप्रकार–पुद्गलमय ज्ञानावरणादि कर्म जो कि पुद्गलद्रव्यमें और पुद्गल के गुणोंमें निज रससे ही वर्तता है उसमें आत्मा अपने द्रव्यको या अपने गुणको वास्तवमें डालता या मिलाता नहीं है क्योंकि ( किसी वस्तुका ) द्रव्यांतर या गुणांतररूप में संक्रमण होना अशक्य है; द्रव्यांतररूमें संक्रमण प्राप्त किये बिना अन्य वस्तुको परिणमित करना अशक्य होनेसे, अपने द्रव्य और गुण-दोनोंको ज्ञानावरणादि कर्ममें न डालता हुआ वह आत्मा परमार्थसे उसका कर्ता कैसे हो सकता है ? ( कभी नहीं हो सकता ।) इसलिये वास्तवमें आत्मा पुद्गलकर्मोंका अकर्ता सिद्ध हुआ ।
इसलिये इसके अतिरिक्त अन्य- अर्थात् आत्माको पुद्गलकर्मोंका कर्ता कहना सो - उपचार है, अब यह कहते हैं:
Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com