SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 217
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates कर्ता-कर्म अधिकार १८३ इह किल यो यावान् कश्चिद्वस्तुविशेषो यस्मिन् यावति कस्मिश्चिच्चिदात्मन्यचिदात्मनि वा द्रव्ये गुणे च स्वरसत एवानादित एव वृत्तः, स खल्वचलितस्य वस्तुस्थितिसीम्नो भेत्तुमशक्यत्वात्तस्मिन्नेव वर्तेत, न पुन: द्रव्यान्तरं गुणान्तरं वा संक्रामेत। द्रव्यान्तरं गुणान्तरं बाऽसंक्रामंश्च कथं त्वन्यं वस्तुविशेष परिणामयेत् ? अतः परभावः केनापि न कर्तुं पार्येत। अतः स्थितः खल्वात्मा पुद्गलकर्मणामकर्तादव्वगुणस्स य आदा ण कुणदि पोग्गलमयम्हि कम्मम्हि। तं उभयमकुव्वंतो तम्हि कहं तस्स सो कत्ता।। १०४ ।। द्रव्यगुणस्य चात्मा न करोति पुद्गलमये कर्मणि। तदुभयमकुर्वस्तस्मिन्कथं तस्य स कर्ता।। १०४ ।। टीका:-जगत्में जो कोई जितनी वस्तु जिस किसी जितने चैतन्यस्वरूप या अचैतन्यस्वरूप द्रव्यमें और गुणमें निज रससे ही अनादिसे ही वर्तती है वह, वास्तवमें अचलित वस्तुस्थितिकी मर्यादाको तोड़ना अशक्य होनेसे, उसीमें (अपने उतने द्रव्यगुणमें ही) वर्तती है परंतु द्रव्यांतर या गुणांतररूप संक्रमण को प्राप्त नहीं होती; और द्रव्यांतर या गुणांतररूपसे संक्रमणको प्राप्त न होती हुई , अन्य वस्तुको कैसे परिणमित करा सकती है ? ( कभी नहीं करा सकती।) इसलिये परभाव किसीके द्वारा नहीं किया जा सकता। भावार्थ:-जो द्रव्यस्वभाव है उसे कोई भी नहीं बदल सकता, यह वस्तुकी मर्यादा है। उपरोक्त कारणसे आत्मा वास्तवमें पुद्गलकर्मका अकर्ता सिद्ध हुआ, यह कहते आत्मा करे नहिं द्रव्य-गुण पुद्गलमयी कर्मों विषै । इन उभयको उसमें न करता, क्यों हि तत्कर्ता बने ।। १०४।। गाथार्थ:- [आत्मा] आत्मा [पुद्गलमये कर्मणि] पुद्गलमय कर्ममें [ द्रव्यगुणस्य च ] द्रव्यको तथा गुणको [ न करोति] नहीं करता; [ तस्मिन् ] उसमें [ तद् उभयम् ] उन दोनोंको [ अकुर्वन् ] न करता हुआ [ सः ] वह [ तस्य कर्ता | उसका कर्ता [ कथं ] कैसे हो सकता है ? Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com
SR No.008303
Book TitleSamaysara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorParmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Spiritual
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy