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________________ १७२ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates समयसार ततः स्थितमेतद् ज्ञानान्नश्यति कर्तृत्वम् एदेण दु सो कत्ता आदा णिच्छयविदूहिं परिकहिदो । एवं खलु जो जाणदि सो मुंचदि सव्वकत्तित्तं ।। ९७ ।। एतेन तु स कर्तात्मा निश्चयविद्भिः परिकथितः। एवं खलु यो जानाति सो मुञ्चति सर्वकर्तृत्वम् ।। ९७ ।। येनायमज्ञानात्परात्मनोरेकत्वविकल्पमात्मनः करोति तेनात्मा निश्चयतः कर्ता प्रतिभाति, यस्त्वेवं जानाति स समस्तं कर्तृत्वमुत्सृजति, ततः स खल्वकर्ता प्रतिभाति। तथाहि-इहायमात्मा किलाज्ञानी सन्नज्ञानादा-संसारप्रसिद्धेन मिलितस्वादस्वादनेन मुद्रितभेदसंवेदनशक्तिरनादित एव स्यात्ः ततः परात्मानावेकत्वेन जानाति; यहाँ, क्रोधादिके साथ एकत्वकी मान्यतासे उत्पन्न होनेवाला कर्तृत्व समझानेके लिये भूताविष्ट पुरुषका दृष्टांत दिया है और धर्मादिक अन्यद्रव्योंके साथ एकत्वकी मान्यतासे उत्पन्न होने वाला कर्तृत्व समझानेके लिये ध्यानाविष्ट पुरुषका दृष्टांत दिया है। 'इससे यह सिद्ध हुआ कि ज्ञानसे कर्तृत्वका नाश होता है' यही अब कहते इस हेतुसे परमार्थविद्, कर्ता कहें इस आत्म को । यह ज्ञान जिसको होय, वो छोड़े सकल कर्तृत्वको ।। ९७ ।। गाथार्थ:- [ एतेन तु] इसलिये [ निश्चयविद्भिः ] निश्चयके जानने वाले ज्ञानीओंने [सः आत्मा ] उस आत्माको [ कर्ता ] कर्ता [ परिकथितः ] कहा है- [ एवं खलु ] ऐसा निश्चयसे [ य: ] जो [ जानाति ] जानता है [ स: ] वह (ज्ञानी होता हुआ ) [ सर्वकर्तृत्वम् ] सर्व कर्तृत्वको [ मुञ्चति ] छोड़ता है। टीका:- क्योंकि यह आत्मा अज्ञानके कारण परके और अपने एकत्वका आत्मविकल्प करता है इसलिये वह निश्चयसे कर्ता प्रतिभासित होता है- जो ऐसा जानता है वह समस्त कर्तृत्वको छोड़ देता है इसलिये वह निश्चयसे अकर्ता प्रतिभासित होता है। इसे स्पष्ट समझाते है: यह आत्मा अज्ञानी होता हुआ, अज्ञानके कारण अनादि संसारसे लेकर मिश्रित स्वादका स्वादन–अनुभवन होनेसे (अर्थात् पुद्गलकर्मका और अपने स्वादका एकमेकरूपसे मिश्र अनुभव होनेसे ), जिसकी भेदसंवेदन ( भेदज्ञान ) की शक्ति संकुचित हो गई है ऐसा अनादिसे ही है; इसलिये वह स्व-परको एकरूप जानता है; Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com
SR No.008303
Book TitleSamaysara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorParmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Spiritual
File Size3 MB
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