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कर्ता-कर्म अधिकार
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यतः किलात्मपरिणामं पुद्गलपरिणामं च कुर्वन्तमात्मानं मन्यन्ते तिक्रियावादिनस्ततस्ते मिथ्यादृष्टय एवेति सिद्धान्तः। मा चैकद्रव्येण द्रव्यद्वयपरिणाम: क्रियमाण: प्रतिभातु। यथा किल कुलाल: कलशसम्भवानुकूलमात्मव्यापारपरिणाममात्मनो ऽव्यतिरिक्तमात्मनोऽव्यति-रिक्तया परिणतिमात्रया क्रियया क्रियमाणं कुर्वाण: प्रतिभाति, न पुनः कलशकरणाहङ्कारनिर्भरोऽपि स्वव्यापारानुरूपं मृत्तिकायाः कलशपरिणामं मृत्तिकायाः अव्यतिरिक्तं मृत्तिकायाः अव्यतिरिक्तया परिणतिमात्रया क्रियया क्रियमाणं कुर्वाण: प्रतिभाति; तथात्मापि पुद्गलकर्मपरिणामानुकूलम-ज्ञानादात्मपरिणाममात्मनोऽव्यतिरिक्त मात्मनोऽव्यतिरिक्तया परिणतिमात्रया क्रियया क्रियमाणं कुर्वाणः प्रतिभातु, मा पुनः पुद्गलपरिणामकरणाहङ्कारनिर्भरोऽपि स्वपरिणामानुरूपं पुद्गलस्य परिणाम पुद्गलादव्यतिरिक्तं पुद्गलादव्यतिरिक्तया परिणतिमात्रया क्रियया क्रियमाणं कुर्वाण: प्रतिभातु।
माननेवाला [ मिथ्यादृष्टयः ] मिथ्यादृष्टि [ भवन्ति ] है।
टीका:-निश्चयसे द्विक्रियावादी यह मानते हैं कि आत्माके परिणामको और पुद्गलके परिणामको स्वयं (आत्मा) करता है इसलिये वे मिथ्यादृष्टि ही हैं ऐसा सिद्धांत है। एक द्रव्य के द्वारा दो द्रव्योंके परिणाम किये गये प्रतिभासित न हों। जैसे कुम्हार घड़ेकी उत्पत्तिमें अनुकूल अपने (इच्छारूप और हस्तादिकी क्रियारूप) व्यापारपरिणामको जो कि अपनेसे अभिन्न है और अपनेसे अभिन्न परिणतिमात्र क्रियासे किया जाता है उसे-करता हुआ प्रतिभासित होता है, परंतु घड़ा बनानेके अहंकारसे भरा हुआ होनेपर भी ( वह कुम्हार) अपने व्यापारके अनुरूप मिट्टीके घटपरिणामको--जो मिट्टीसे अभिन्न है और मिट्टीसे अभिन्न परिणतिमात्र क्रियासे किया जाता है उसे-करता हुआ प्रतिभासित नहीं होता; इसीप्रकार आत्मा भी अज्ञानके कारण पुद्गलकर्मरूप परिणामके अनुकूल अपने परिणामको-जो कि अपने से अभिन्न है और अपनेसे अभिन्न परिणतिमात्र क्रियासे किया जाता है उसे-करता हुआ प्रतिभासित हो, परंतु पुद्गलके परिणामको करनेसे अहंकारसे भरा हुआ होने पर भी ( वह आत्मा) अपने परिणामके अनुरूप पुद्गलके परिणामको-जो कि पुद्गलसे अभिन्न है और पुद्गलसे अभिन्न परिणतिमात्र क्रियासे किया जाता है उसे-करता हुआ प्रतिभासित न हो।
भावार्थ:-आत्मा अपने ही परिणामको करता हुआ प्रतिभासित हो; पुद्गलके परिणामको करता हुआ कदापि प्रतिभासित न हो। आत्माकी और पुद्गलकी-दोनोंकी क्रिया एक आत्मा ही करता है ऐसा माननेवाले मिथ्यादृष्टि हैं। जड़-चेतनकी एक क्रिया हो तो सर्व द्रव्योंके पलट जानेसे सबका लोप हो जायगा-यह महादोष उत्पन्न होगा।
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