________________
Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates
समयसार
१५४
ततो या काचन क्रिया किल सकलापि सा क्रियावतो न भिन्नेति क्रियाक!र व्यतिरिक्ततायां वस्तुस्थित्या प्रतपत्यां, यथा व्याप्यव्यापकभावेन स्वपरिणामं करोति भाव्यभावकभावेन तमेवानुभवति च जीवस्तथा व्याप्यव्यापकभावेन पुद्गलकर्मापि यदि कुर्यात् भाव्यभावकभावेन तदेवानुभवेच्च ततोऽयं स्वपरसमवेतक्रियाद्वयाव्यतिरिक्ततायां प्रसजन्त्यां स्वपरयोः परस्परविभागप्रत्यस्तमनादनेकात्मकमेकमात्मानमनु भवन्मिथ्या दृष्टितया सर्वज्ञावमतः स्यात्।
कुतो द्विक्रियानुभावी मिथ्यादृष्टिरिति चेत्
जम्हा दु अत्तभावं पोग्गलभावं च दो वि कुव्वंति। तेण दु मिच्छादिट्ठी दोकिरियावादिणो हुति।।८६ ।।
यस्मात्त्वात्मभावं पुद्गलभावं च द्वावपि कुर्वन्ति। तेन तु मिथ्यादृष्टयो द्विक्रियावादिनो भवन्ति।।८६ ।।
इसलिये ( यह सिद्ध हुआ कि) जो कुछ क्रिया है वह सब क्रियावानसे (द्रव्यसे) भिन्न नहीं है। इसप्रकार, वस्तुस्थितिसे ही ( अर्थात् वस्तुकी ऐसी ही मर्यादा होनेसे) क्रिया और कर्ताकी अभिन्नता सदा ही प्रगट होनेसे, जैसे जीव व्याप्यव्यापकभावसे अपने परिणामको करता है और भाव्यभावकभावसे उसीका अनुभव करता है-भोगता है उसीप्रकार व्याप्यव्यापकभावसे पुद्गलकर्मको भी करे और भाव्यभावकभावसे उसी को भोगे तो वह जीव, अपनी और परकी एकत्रित हुई दो क्रियाओंसे अभिन्नताका प्रसंग आने पर स्व-परका परस्पर विभाग अस्त (नाश) हो जाने से, अनेकद्रव्यस्वरूप एक आत्माका अनुभवकरता हुआ मिथ्यादृष्टिताके कारण सर्वज्ञके मतसे बाहर है।
भावार्थ:-दो द्रव्योंकी क्रिया भिन्न ही है। जड़की क्रियाको चेतन नहीं करता और चेतनकी क्रियाको जड़ नहीं करता। जो पुरुष एक द्रव्यको दो क्रियायें करता हुआ मानता है वह मिथ्यादृष्टि है, क्योंकि दो द्रव्यकी क्रियाओंको एक द्रव्य करता है ऐसा मानना जिनेन्द्र भगवानका मत नहीं है।
अब पुनः प्रश्न करता है कि दो क्रियाओंका अनुभव करनेवाला मिथ्यादृष्टि कैसे है ? उसका समाधान करते हैं:
जीवभाव पुद्गलभाव-दोनों भावको आत्मा करे ।
इससे ही मिथ्यादृष्टि, ऐसे द्विक्रियावादी हुवे ।। ८६ ।।
गाथार्थ:- [ यस्मात् तु] क्योंकि [ आत्मभावं ] आत्माके भावको [च ] और [पुद्गलभावं ] पुद्गलके भावको- [ द्वौ अपि ] दोनोंको [ कुर्वंति ] आत्मा करते हैं ऐसा वे मानते हैं [ तेन तु] इसलिये द्विक्रियावादिनः ] एक द्रव्यके दो क्रियाओं का होना
Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com