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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates समयसार १२२ विशुद्धिस्थान-संयमलब्धिस्थानान्यपि पुद्गलकर्मपूर्वकत्वे सति, नित्यमचेतनत्वात्, पुद्गल एव, न तु जीव इति स्वयमायातम्। ततो रागादयो भावा न जीव इति सिद्धम्। तर्हि को जीव इति चेत् ___ (अनुष्टुभ् ) अनाद्यनन्तमचलं स्वसंवेद्यमिदं स्फुटम्। जीवः स्वयं तु चैतन्यमुच्चैश्चकचकायते।। ४१ ।। विशुद्धिस्थान, संयमलब्धिस्थान भी पुद्गलकर्मपूर्वक होते होनेसे, सदा ही अचेतन होनेसे , पुद्गल ही हैं-जीव नहीं ऐसा स्वतः सिद्ध हो गया। इससे यह सिद्ध हुआ कि रागादिभाव जीव नहीं हैं। भावार्थ:-शुद्धद्रव्यार्थिक नयकी दृष्टिमें चैतन्य अभेद है और उसके परिणाम भी स्वाभाविक शुद्ध ज्ञान-दर्शन हैं। परनिमित्तसे होनेवाले चैतन्यके विकार, यद्यपि चैतन्य जैसे दिखाई देते हैं तथापि, चैतन्यकी सर्व अवस्थाओंमें व्यापक न होनेसे चैतन्यशून्य हैं-जड़ हैं। और आगममें भी उन्हें अचेतन कहा है। भेदज्ञानी भी उन्हें चैतन्यसे भिन्नरूप अनुभव करते हैं इसलिये भी वे अचेतन हैं, चेतन नहीं। प्रश्न:-यदि वे चेतन नहीं हैं तो क्या हैं ? वे पुद्गल हैं या कुछ और ? उत्तर:-वे पुद्गलकर्मपूर्वक होते हैं इसलिये वे निश्चयसे पुद्गल ही हैं क्योंकि कारण जैसा ही कार्य होता है। इसप्रकार यह सिद्ध किया कि पुद्गलकर्मके उदयके निमित्तसे होनेवाले चैतन्यके विकार भी जीव नहीं, पुद्गल हैं। ___ अब यहाँ प्रश्न होता है कि वर्णादिक और रागादिक जीव नहीं तो जीव कौन है ? उसके उत्तररूप श्लोक कहते हैं: श्लोकार्थ:- [अनादि] जो अनादि है अर्थात् किसी काल उत्पन्न नहीं हुआ , [अनन्तम् ] जो अनंत है अर्थात् किसी काल जिसका विनाश नहीं हुआ, [अचलं] जो अचल है अर्थात् जो कभी चैतन्यपनेसे अन्यरूप-चलाचल-नहीं होता, [ स्वसंवेद्यम् ] जो स्वसंवेद्य है अर्थात् जो स्वयं अपने आप से ही जाना जाता है [ तु] और [ स्फुटम् ] प्रगट अर्थात् छुपा हुआ नहीं-ऐसा जो [ इदं चैतन्यम् ] यह चैतन्य [ उच्चैः] अत्यंत [चकचकायते] चकचकित प्रकाशित हो रहा है, [स्वयं जीवः ] वह स्वयं ही जीव है। भावार्थ:-वर्णादि और रागादि भाव जीव नहीं है किन्तु ऊपर कहा वैसा चैतन्यभाव ही जीव है। ४१ । Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com
SR No.008303
Book TitleSamaysara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorParmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Spiritual
File Size3 MB
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