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समयसार
१०२
जीवस्स पत्थि वग्गो ण वग्गणा णेव फड्ढया केई। णो अज्झप्पट्ठाणा णेव य अणुभागठाणाणि।। ५२ ।। जीवस्स णत्थि केई जोयट्ठाणा ण बंधठाणा वा। णेव य उदयट्ठाणा ण मग्गणट्ठाणया केई।। ५३ ।। णो ठिदिबंधट्ठाणा जीवस्स ण संकिलेसठाणा वा। णेव विसोहिट्ठाणा णो संजमलद्धिठाणा वा।। ५४ ।। णेव य जीवट्ठाणा ण गुणट्ठाणा य अत्थि जीवस्स। जेण दु एदे सव्वे पोग्गलदव्वस्स परिणामा।। ५५ ।।
जीवस्य नास्ति वर्णो नापि गन्धो नापि रसो नापि च स्पर्शः। नापि रूपं न शरीरं नापि संस्थानं न संहननम्।। ५० ।। जीवस्य नास्ति रागो नापि द्वेषो नैव विद्यते मोहः। नो प्रत्यया न कर्म नोकर्म चापि तस्य नास्ति।। ५१ ।।
नहीं वर्ग जीवके, वर्गणा नहिं, कर्मस्पर्धक है नहीं। अध्यात्मस्थान न जीवके, अनुभागस्थान भी है नहीं।।२।। जीवके नहीं कुछ योगस्थान रु, बंधस्थान भी है नहीं। नहिं उदयस्थान न जीवके, अरु स्थान मार्गणा के नहीं ।। ५३।। स्थितिबंधस्थान न जीवके, संक्लेशस्थान भी है नहीं। जीवके विशुद्धिस्थान, संयमलब्धि स्थान भी है नहीं ।।५४।। नहिं जीवस्थान भी जीवके, गुणस्थान भी जीवके नहीं। ये सब ही पुद्गल द्रव्यके, परिणाम हैं जानो यही ।। ५५ ।।
गाथार्थ:- [ जीवस्य ] जीवके [वर्णः ] वर्ण [ नास्ति ] नहीं, [ न अपि गन्धः] गंध भी नहीं, [ रसः अपि न ] रस भी नहीं [च ] और [ स्पर्शः अपि न ] स्पर्श भी नहीं, [ रूपं अपि न ] रूप भी नहीं, [न शरीरं] शरीर भी नहीं, [ संस्थानं अपि न] संस्थान भी नहीं, [संहननम् न] संहनन भी नहीं ; [जीवस्य ] जीवके [ रागः नास्ति] राग भी नहीं, [ द्वेषः अपि न] द्वेष भी नहीं, [ मोहः ] मोह भी [न एव विद्यते] विद्यमान नहीं, [प्रत्ययाः नो] प्रत्यय (आस्रव ) भी नहीं, [ कर्म न ] कर्म भी नहीं [च ] और [ नोकर्म अपि] नोकर्म भी [ तस्य नास्ति ] उसके नहीं हैं;
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