________________
Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates
पूर्वरंग
इतिश्रीसमयसारव्याख्यायामात्मख्यातौ पूर्वरङ्गः समाप्तः।
उन्हें सम्यग्दृष्टि यथार्थ स्वरूप बतलाकर, उनका भ्रम मिटाकर, उन्हें शांतरसमें लीन करके सम्यग्दृष्टि बनाता है। उसकी सूचनारूपमें रंगभूमिके अंतमें आचार्यने ‘मज्जंतु' इत्यादि इस श्लोक की रचना की है, वह अब जीव-अजीवके स्वांगका वर्णन करेंगे इसका सूचक है ऐसा आशय प्रगट होता है। इसप्रकार यहाँ तक रंगभूमिका वर्णन किया है।
नृत्यकुतूहल तत्त्वको, मरियवि देखो धाय। निजानंद रसमें छको, आन सबै छिटकाय।
इसप्रकार [ श्रीमद्भगवत्कुंदकुंदाचार्यदेवप्रणीत] श्री समयसार परमागमकी [श्रीमद् अमृतचंद्राचार्यदेवविरचित ] आत्मख्याति नामक टीकामें पूर्वरंग समाप्त हुआ।
Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com