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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates प्रथम सम्यग्दर्शन अधिकार [१७ इस प्रकार आप्त का स्वरूप चार श्लोकों में कहा है। अब सच्चे आगम का लक्षण कहने वाला श्लोक कहते हैं - आप्तोपज्ञमनुल्लंघ्यमदुष्टैष्टविरोधकम् । तत्त्वोपदेशकृतसार्वं शास्त्रं कापथघट्टनम् ।।९।। अर्थ :- शास्त्र उसे कहते हैं जो सर्वज्ञ वीतराग का कहा हुआ हो, किसी वादी-प्रतिवादी द्वारा उल्लंघन नहीं किया जा सके, दृष्ट अर्थात् प्रत्यक्ष और इष्ट अर्थात् अनुमान द्वारा जिसमें विरोध नहीं आवे, तत्त्व अर्थात् जैसा वस्तु का स्वरूप है वैसा कथन-उपदेश करनेवाला हो, सर्व जीवों को हितरूप हो, तथा कुमार्ग अर्थात् मिथ्यामार्ग का निषेध करनेवाला हो। इस प्रकार छह विशेषणों सहित शास्त्र का स्वरूप कहा। यहाँ ऐसा अभिप्राय जानना कि - वर्तमान में काल-दोष के निमित्त से मिथ्यामार्गी बहुत उत्पन्न हुए है, जिन्होंने अपना अभिमान और विषय-कषायों का पोषण करने के लिये अनेक खोटे उपदेश देनेवाले शास्त्र रचकर जगत को सच्चे धर्ममार्ग से भ्रष्ट कर दिया है। संसार में जितने मत चल रहे हैं वे सभी शास्त्रों द्वारा ही चल रहे हैं। शास्त्र बिना कोई मत है ही नहीं। ब्राह्मणादि के तो वेद, स्मृति, पुराण ही शास्त्र हैं; उनमें हिंसा की प्रधानता करके अश्वमेध, नरमेध आदि यज्ञ तथा जीवों का शिकार, समस्त जलचारी-स्थलचारी जीवों की हिंसा करने में धर्म कहते हैं; देवताओं के लिये, पितरों तथा व्यंतरो की तृप्ति के लिये मांसपिंड़ के दान को भी धर्म कहते हैं; भवानी, भैरव आदि देव भैंसा-बकरा इत्यादि को मारकर चढ़ाने से और भक्षण करने से ही प्रसन्न होते हैं; देवताओं को मांसाहारी ही कहते हैं; राजाओं का धर्म शिकार ही है; इत्यादि कार्यों की प्रवृत्ति शास्त्रों के वचनों से ही चल रही है। हरि, हर, ब्रह्मा आदि भगवान हैं, परमेश्वर हैं – ऐसा कह करके हरि को तो निरन्तर ग्वालों की स्त्रियों में आसक्त होकर बांसुरी बजाना, नाचना, तथा गोवर्धन अहीर को मारकर उसकी स्त्री हरण करना, अनेक न्याय-अन्याय की लीला करनेवाला कहते हैं ? यह सब शास्त्रों में लिखा ही जगत मान रहा है। हर जो शिव उसके आधे शरीर में स्त्री के आकार की कल्पना. भस्म लगाना. अनेक हत्यायें करना, शाप को प्राप्त करना, त्रिशूल आदि आयुध रखना, लोक का संहार करना - ये सभी बातें शास्त्रों में लिखी होने से ही जगत के लोकग मानते हैं। शिव के लिंग को पार्वती की योनि में रखे हुए को लगातार जल द्वारा सींचना, आकधतरा चढ़ाना इत्यादि समस्त बातें शास्त्रों में लिखी होने से ही जगत में अनेक मनष्य ऐसी प्रवृत्ति को ही धर्म जानकार सेवन करते हैं। ___ब्रह्मा को समस्त सृष्टि का कर्ता और पितामह कहते हैं; इसी ब्रह्मा को अतिकामी होकर अपनी ही पुत्री से भोग करके भ्रष्ट हुआ भी कहते हैं। वही ब्रह्मा उर्वशी नाम की अप्सरा पर मोहित होकर Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008300
Book TitleRatnakarandak Shravakachar
Original Sutra AuthorSamantbhadracharya
AuthorMannulal Jain
PublisherVitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
Publication Year2000
Total Pages527
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, & Religion
File Size6 MB
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