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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates १८] [श्री रत्नकरण्ड श्रावकाचार अपने चार हजार वर्ष की तपस्या के फल से चार मुख बनाकर उर्वशी नाम की अप्सरा पर मोहित होकर अपने चार हजार वर्ष की तपस्या के फल से चार मुख बनाकर उर्वशी को देखकर तप से भ्रष्ट हुआ और उर्वशी के शाप को प्राप्त किया। ये सब बातें उन्हीं के शास्त्रों में ही लिखी हैं। जगत की रचना करनेवाला और पालन करनेवाला भगवान नारायण को कच्छ, मच्छ, सूकर, सिंह आदि अनेक अवतार धारण करनेवाला; राक्षसों का नाश करनेवाला; उन्हीं के शास्त्रों में ही लिखा है। हनुमान को बंदर; गणेश को हाथी के मुंह वाला, चूहे पर सवारी करना तथा लड्डू खाने में अतिरागी होना आदि भी उन्हीं के शास्त्रों में ही लिखा है। जीवों को मारना, जीवों को मारकर देवताओं को प्रसन्न करना; बावड़ी खुदवाने में बड़ा धर्म होता है - ऐसा उनके शास्त्रों में ही लिखा है। श्वेताम्बरों ने अनेक कल्पित शास्त्र बनाये हैं, उनका समस्त धर्म विरूद्ध आचरण शास्त्रों से ही प्रवर्त रहा है। इस कलिकाल में भेषधारियों की पूजा, कुलदेवता की पूजा, क्षेत्रपाल आदि व्यंतरों की पूजा, पद्मावती - चक्रेश्वरी इत्यादि देवियों की पूजा तथा अनेक मिथ्या प्ररूपणायें, तर्पण आदि शास्त्रों में लिखे हैं इसीलिये चल रहे हैं। अन्य भील, म्लेच्छ, मुसलमान आदि सभी के अपने-अपने मत के शास्त्र हैं। शास्त्र के बिना मिथ्या कल्पनायें कैसे प्रचलित होंगी? इसी कारण जगत में शास्त्र बहुत प्रकार के हैं। शास्त्रों के आधार से ही अनेक पाखण्ड, खोटे भेष, मिथ्या धर्म चल रहे हैं। अतः परीक्षा प्रधानी होकर अच्छी तरह परीक्षा करके शास्त्रों को स्वीकार करना। पहले कहे छह विशेषणों सहित को ही आगम मानना। प्रथम तो सर्वज्ञ वीतरागी का कहा होना चाहिये। सर्वज्ञ के सिवाय दूसरा कोई अपने इंद्रियजनित ज्ञान से जीव, अजीव , अतीन्द्रिय, अमूर्तिक पदार्थों का कथन नहीं कर सकेगा; पाप-पुण्य आदि अदृष्ट पदार्थों का व परमाणु वगैरह सूक्ष्म पदार्थों का कथन कहाँ से करेगा? स्वर्ग-नरक की पर्यायों को, और स्वर्ग-नरक में उत्पन्न हुए सुख के कारण अनेक संबंधों को कैसे जानेगा ? मेरू कुलाचल आदि का कथन कैसे करेगा ? जीवादि द्रव्यों की अनन्त पर्यायें हो गई हैं, आगे भी अनन्त पर्यायें होगी, तथा अनन्त द्रव्यों के गुण और उनकी अनन्त पर्यायों का एक समय में एक साथ होनेवाले परिणमन का क्रमवर्ती इंद्रियज्ञान का धारी कैसे कथन कर सकेगा ? अतः सर्वज्ञ के बिना इंद्रियजनित ज्ञानवाले के द्वारा आगम का कहना यर्थार्थ नहीं बन सकता है। सच्चे आगम का कथन सर्वज्ञ से ही बन सकता है। यदि रागद्वेषवाला, अपने अभिमान को पुष्ट करने की इच्छावाला, अपनी विख्यातता फैलाने का इच्छुक तथा विषयों का लोभी वक्ता होगा तो सत्य स्वरूप नहीं कह सकेगा। अतः सर्वज्ञ वीतरागी के द्वारा कहे गये आगम ही प्रामाणिक है। जिस आगम में वादी-प्रतिवादी द्वारा दिखाये दोष हों वह आगम प्रामाणिक नहीं है। इसलिये वादी-प्रतिवादी जिसका उल्लंघन नहीं कर सकें, बाधा नहीं दे सकें ऐसा अनुलंघ्य ही आगम कहलाता है। Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008300
Book TitleRatnakarandak Shravakachar
Original Sutra AuthorSamantbhadracharya
AuthorMannulal Jain
PublisherVitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
Publication Year2000
Total Pages527
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, & Religion
File Size6 MB
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