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[श्री रत्नकरण्ड श्रावकाचार कैसे रोक सकता है ? जैसे दूसरे जीवों को मरते हुए देखते हैं उसी प्रकार मैं भी मरण को प्राप्त होऊँगा, जैसे अन्य जीवों के स्त्री, पुत्रादि का वियोग देखते हैं उसी प्रकार मेरे भी वियोग होगा, कोई शरण नहीं है।
अशुभ कर्म की उदीरणा होने पर बुद्धि नष्ट हो जाती है। प्रबल कर्म का उदय होने पर एक भी उपाय नहीं चलता है, अमृत विष हो जाता है, तिनका भी शस्त्र बन जाता है, अपने खास मित्र भी शत्रु हो जाते हैं। अशुभ कर्म के प्रबल उदय के वश बुद्धि विपरीत हो जाने से स्वयं ही अपना घात कर लेता है। जब शुभ कर्म का उदय होता है तब मूर्ख को भी प्रबल बुद्धि प्रकट हो जाती है, बिना किये ही अपने आप अनेक सुख के उपाय प्रकट हो जाते हैं, बैरी भी मित्र बन जाता है, विष भी अमृतमय परिणम जाता है।
___ जब पुण्य का उदय होता है तब समस्त उपद्रवकारी वस्तुएँ भी अनेक प्रकार के सुख देने वाली हो जाती हैं। अतः संसार में पुण्य कर्म ही शरण है। पाप के उदय से हाथ में रखा हुआ धन भी क्षण भर में नष्ट हो जाता है, पुण्य के उदय से बहुत दूर रखी हुई वस्तु भी प्राप्त हो जाती है। लाभांतराय का क्षयोपशम हो तो बिना प्रयत्न किये ही निधि रत्न प्रकट हो जाते हैं। ____ जब पाप का उदय होता है तब सुन्दर आचरण करते हुए भी उसे दोष-कलंक लग जाता है, अपवाद अपयश हो जाता है। यश नामकर्म के उदय से समस्त अपवाद दूर होकर दोष भी गुणरुप परिणम जाते है, संसार तो पुण्य-पाप के उदयरुप है। परमार्थ से तो दोनों के उदय को पर का (कर्म का) किया अपने आत्मा से भिन्न जानकर ज्ञायक ही रहो, हर्ष विषाद नहीं करो। पूर्व में जो कर्म का बंध किया था वह अब उदय में आया है, वह अपने द्वारा दूर करने से दूर नहीं होगा, उदय आ जाने के बाद कोई उपाय नहीं है। कर्म का फल जन्म, जरा, मरण, रोग, चिन्ता, भय, वेदना, दुःख आदि के आ जाने पर कोई रक्षा करनेवाला मंत्र, तंत्र, देव, दानव, औषधि आदि समर्थ नहीं हैं।
कर्म का उदय आकाश पाताल में कहीं भी नहीं छोड़ता है। औषधि आदि बाह्य निमित्त भी अशुभ कर्म का उदय मंद होने पर उपकार करते हैं। दुष्ट, चोर, भील, बैरी, सिंह, व्याघ्र , सर्प आदि तो ग्राम में, वन में मारते हैं; जलचर आदि जल में मारते हैं; किन्तु अशुभ कर्म का उदय जल में, थल में, नभ में, वन में, समुद्र में, पहाड़ में, गढ़ में, घर में, शैया में, कुटुम्ब में, राजादि सामन्तों के बीच में, शस्त्रादि से रक्षा करते हुए भी कहीं पर भी नहीं छोड़ता है।
इस लोक में ऐसे भी स्थान हैं जिनमें सूर्य चंद्रमा का प्रकाश, पवन तथा वैक्रियिक ऋद्धिधारी भी गमन नहीं कर सकते हैं, परन्तु कर्म का उदय तो सर्वत्र गमन करता है। प्रबल कर्म का उदय होने पर विद्या, मंत्र, बल, औषधि, पराक्रम, मित्र, सामन्त, हाथी, घोड़ी, रथ, प्यादा, गढ़, कोट, शस्त्र, उपाय, शाम, दाम, दण्ड, भेद, आदि समस्त उपाय कोई शरण नहीं हैं। जैसे उदय होते हुए सूर्य को कोई नहीं रोक सकता है, वैसे ही कर्म के उदय को भी अरोक जानकर साम्यभाव
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