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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates षष्ठ - सम्यग्दर्शन अधिकार [३५७ धर्मध्यान और उसके भेद - अब धर्मध्यान के स्वरुप का वर्णन करते हैं। यह धर्मध्यान किसी सम्यग्दृष्टि के ही होता है। कोई बिरला महान पुरुष राग-द्वेष-मोह रुप बंधन को छेदकर परम उद्यमी होकर बड़े पुरुषार्थ से कभी धर्मध्यान को प्राप्त होता है। जैसे सोते, बैठते, चलते, खानपान करते विषयों को भोगते हुए, कषायों में प्रवर्तनेवाले के भी बिना यत्न ही आर्त-रौद्रध्यान हो जाता है, उसी तरह धर्मध्यान नहीं हो जाता है। स्थान के निमित्त से परिणाम भी शुभ-अशुभ होते हैं, अत: धर्मध्यान का इच्छुक कितने ही परिणामों को बिगाड़नेवाले स्थानों का दूर से ही त्याग करता है। खोटे स्थान में परिणाम खोटे ही हो जाते हैं। दुष्ट, हिंसक, पाप-कर्म करनेवाले, पाप कर्म से जीविका करनेवाले , तीव्र कषायी, नास्तिकमती, धर्म के द्रोही जहाँ रहते हों वहाँ पर परिणाम क्लेशित हो जाते हैं। दुष्ट राजा हो, राजा का दुष्ट मंत्री हो, पाखण्डी-मिथ्यादृष्टि भेषधारियों का जहाँ अधिकार हो वहाँ धर्मध्यान में परिणाम नहीं लगते हैं। __ जहाँ परचक्र आदि का प्रजा के ऊपर उपद्रव हो रहा हो; दुर्भिक्ष-महामारी आदि का उपद्रव सहित प्रजा हो; वेश्याओं का संचार हो; व्यभिचारियों का संकेत स्थान हो; आचरणभ्रष्ट भेषधारियों का स्थान हो; जहाँ रस कर्म-रसायन के कर्म होते हों; मारण उच्चाटन विद्या के साधक हों; जहाँ हिंसादि पापकर्म के उपदेशक काम-शास्त्र-युद्धशास्त्र कपटी-धूतों के बनाये खोटी कथा के शास्त्रों की प्ररुपणा करते हों; जहाँ जुआ खेलनेवाले मद्यपान करनेवाले हों; व्यभिचारी भांड डोंम चारण भाटों से युक्त हों; जहाँ चाण्डाल, धीवर, शिकारी, कषायी आदि दुष्टों का संचार हो; दुष्ट तपस्वियों, स्त्रियों का परिचार हो; नपुंसको का समागम हो; जहाँ दीन, याचक, रोगी, विकलांग, अंधे, लूले , बहरे, पीड़ा के शब्द करनेवाले जहाँ हों; जहाँ शिकार करनेवाले हिंसक जीव, कलह काम के धारक पशु-मनुष्य आदि रहते हों; जहाँ जीवों के बिल, बांबी , कण्टक, तृण, विषम, पाषाण, ठीकरे, हाड़, मांस , रुधिर, मल, मूत्र, पंचेन्द्रिय जीव के कलेवर, कर्दम आदि से दूषित स्थान हो; जहाँ दुर्गन्ध आती हो; कुत्ता, बिल्ली, स्यार, कागला, घूघू इत्यादि दुष्ट जीव हों; तथा शुभ परिणामों को बिगाड़नेवाले, ध्यान को नष्ट करनेवाले स्थान दूर से ही त्यागने योग्य हैं, क्योंकि खोटे स्थान के योग से अवश्य ही परिणाम बिगड़ते हैं। अतः जो शुभ ध्यान के इच्छुक हों वे खोटे स्थानों में स्वप्न में भी निवास नहीं करें। धर्मध्यान के लिये सुन्दर, मन को प्रिय, शीत, उष्ण, आताप, वर्षा , अतिपवन की बाधा रहित, डांस मच्छर अन्य विकलत्रय जीवों की बाधा रहित, शुद्ध भूमि, शिलातल, काष्ठफल हो उनके ऊपर बैठकर, शून्य गृह, पुरातन बाग, वन के जिनमंदिर, घर में निराकुल एकांत स्थान बाधा रहित हो, रागद्वेष को उत्पन्न नहीं करता है, कोलाहल रहित हो, नृत्य, गीत, वादित्रादि रहित हो, कलह विसंवादादि रहित हो, हिंसा रहित स्थान हो वहाँ पर धर्मध्यान के इच्छुक होकर निश्चल बैठना चाहिये। धर्मध्यान में स्थान की शुद्धता, आसन की दृढ़ता प्रधान कारण है। जिसका आसन दो प्रहर तक भी दृढ़ Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com
SR No.008300
Book TitleRatnakarandak Shravakachar
Original Sutra AuthorSamantbhadracharya
AuthorMannulal Jain
PublisherVitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
Publication Year2000
Total Pages527
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, & Religion
File Size6 MB
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