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Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates षष्ठ- सम्यग्दर्शन अधिकार
[३४३ कितने ही श्रोता तोता के समान होते हैं। जिनसे राम बुलवावो तो राम बोलते हैं, रहीम बुलवावो तो रहीम बोलते हैं, कुछ और सिखाओ तो कुछ और बोलते हैं; उन्हें राम का भी ज्ञान नहीं है, रहीम का भी ज्ञान नहीं है। उसी प्रकार ये भी पाप-पुण्य का विचार रहित जो पढ़ाओ वही पढ़ लेते हैं, ग्रहण कर लेते हैं, किन्तु विचार रहित होते हुये अपना स्वरुप व पर के स्वरुप के ज्ञान से रहित ही रहते हैं।५।
कितने ही श्रोता बिल्ली के समान होते हैं। जिस प्रकार बिल्ली सोते हुए भी अपने शिकार की तरफ जागृत ही रहती है, उसी प्रकार ये श्रोता भी वक्ता की वाणी में से विषय, कषाय छल ही ग्रहण करते रहते हैं।६।
कितने ही बगुला के समान श्रोता होते हैं। जैसे बगुला अपना शिकार पकड़ने के लिये ध्यानी-सा बना बैठा रहता है, उसी प्रकार ये भी अपने विषय-कषाय ही ग्रहण करते हैं। ७।
कितने ही श्रोता डांस ( मच्छर) के समान होते हैं, जो वक्ता को बारम्बार बाधा उत्पन्न करते हैं।८।
कितने ही श्रोता बकरा के समान होते हैं। जैसे बकरे को कितना ही इत्र फुलेल लगावो, सुगंधित पानी पिलाओ तो भी वह दुर्गन्ध ही प्रकट करता है, उसी प्रकार ये भी उज्ज्वल धर्म सुनते हुए भी पाप ही उगलते हैं।९।
कितने ही जलौका (जौक) के समान श्रोता होते हैं। जैसे जौंक को स्तन के ऊपर भी लगावो तो वह गन्दी वस्तु रुधिर ही ग्रहण करती है, उसी प्रकार ये भी विषय-कषाय ही ग्रहण करते हैं।१०।
कितने ही श्रोता फूटे घड़े के समान होते हैं। वे धर्म सुनने पर भी चित्त में लेश (अंश) मात्र भी धारण नहीं करते है।११
कितने ही श्रोता सर्प के समान स्वभाव वाले होते हैं। वे दूध-मिश्री को पीने पर भी प्रबल जहर ही बढ़ाते हैं।१२।
कितने ही श्रोता गाय के समान उत्तम स्वभाव वाले होते हैं। वे तिनका-घास खाकर भी दूध देते हैं ।१३।
कितने ही श्रोता पाषाण की शिला के समान होते हैं। उनको बहुत बार धर्मोपदेश देने पर भी हृदय में प्रवेश नहीं करता है ।१४।।
कितने ही श्रोता कसौटी के समान परीक्षा-प्रधानी होते हैं।१५।
कितने ही श्रोता तकड़ी (तराजू) की डांडी के समान होते हैं जो घट-बढ़ , हेयउपादेय को अच्छी तरह से जानते हैं।१६ ।
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