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Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates षष्ठ - सम्यग्दर्शन अधिकार]
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वक्ता ऐसा होना चाहिये जिसकी बड़े ज्ञानी लोग प्रशंसा करते हों, क्योंकि बड़े-बड़े ज्ञानी जिसकी प्रशंसा करते हैं, उसके वचनों पर जगत दृढ़ श्रद्धान करता है। १५ ।
वक्ता को उद्धतता से रहित होना चाहिये। यदि वक्ता उद्धत होगा तो वह सभी को अप्रिय हो जायेगा ।१६।।
वक्ता लोकरीति, देश, काल, श्रोताओं की सद्भावना-दुष्टता, प्रवीणता, मूढ़ता, शक्तता-अशक्तता आदि सभी जान कर ऐसा उपदेश करे, जिसे सभी लोग बड़े आदर से ग्रहण करें। लोकज्ञाता हुए बिना यथा-योग्य उपदेश नहीं होता है । १७ ।
वक्ता में कोमलता गुण होना चाहिये। कठोर परिणामी के कठोर वचन आदरने योग्य नहीं होते हैं। उसे श्रोता सुनना नहीं चाहते हैं।१८।
वक्ता को वक्तापने द्वारा धन, भोग आदि की इच्छा नहीं होनी चाहिये।१९।
वक्ता के मुख से अक्षरों का स्पष्ट उच्चारण होना चाहिये। स्पष्ट अक्षरों को बोले बिना समझ में नहीं आता हैं।२०।
वक्ता के अक्षर ऐसे मीठे हों कि श्रोता को ऐसा लगे जैसे वक्ता ने कानों के द्वार से सभी अंगों को अमृत से सींच दिया हो ।२१।
वक्ता ऐसा हो जिसका स्वामित्व श्रोताजन समझते हों- अपना मानते हों।२२। सम्यग्दर्शन, ज्ञान, चारित्र, वात्सल्य आदि अनेक गुणों का निधान हो ।२३।
ऐसे वक्तापने के अनेक गुणों से युक्त जो हो वही धर्म कथा का वक्ता होता है। ऐसे गुणों के धारक वक्ता का उपदेश कोई महाभाग्यवान पुण्यवान लोगों का मिलता है। सम्यग्देशनालब्धि का प्राप्त होना अनन्तकाल में भी दुर्लभ है।
श्रोता का स्वरुप : धर्मोपदेश भी मिल जाय, किन्तु योग्य श्रोतापना बिना धर्म ग्रहण नहीं होता है। जैसा योग्य पात्र बिना वस्तु ठहरती नहीं है, योग्य पात्र में रखने से पात्र तथा वस्तु दोनों का नाश हो जाता है, उसी प्रकार योग्य श्रोतापना बिना भी धर्म का उपदेश ठहरता नहीं है। अतः संक्षेप में श्रोता का लक्षण इस प्रकार जानना:
प्रथम तो भव्य हो। जो उपदेश देने पर भी सम्यक श्रद्धान आदि गण ग्रहण करने योग्य नहीं हो उसे उपदेश देना व्यर्थ है। मेरा कल्याण क्या है, मेरा हित क्या है ? ऐसा जिसको हमेशा विचार आता हो, जिसे अपने हित की चाह नहीं है, वह बिना प्रयोजन धर्म कथा क्यों सुनेगा ? वह तो विषय कषाय का लाभ, धन का लाभ जिससे सधै उसकी इच्छा करता है।।
दु:ख से अत्यन्त भयभीत हो, अब मुझे नरक तिर्यंचादि पर्याय का दुःख नहीं हो। जिसे ऐसा भय नहीं होगा वह पाप छोड़ने को, विषय-कषाय छोड़ने को शास्त्र श्रवण क्यों करेगा ? अतः दुःख से भयभीत होना चाहिये ।२।
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