________________
Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates ३४०]
[श्री रत्नकरण्ड श्रावकाचार जिसको भोजन, वस्त्र, स्थान, धन, यश, अभिमान की चाह होगी वह वक्ता यथार्थ व्याख्यान नहीं कर सकेगा, लोगों को प्रसन्न करना चाहेगा। लोभी के यथार्थ सत्यार्थ वक्तापना नहीं होता है ।४।
वक्ता की बुद्धि तत्काल उत्तर देनेवाली होना चाहिये। यदि वक्ता तत्काल उत्तर नहीं दे ता है तो सभा में क्षोभ हो जाता है। सभा में उपस्थित श्रोताओं को वक्ता की दृढ़ प्रतीति नहीं रह जायगी।५।
वक्ता को मंदकषायी होना चाहिये। मंद कषायी हुए बिना लोभी, कपटी, क्रोधी, अभिमानी का दिया उपदेश कोई अंगीकार नहीं करता है।६।
वक्ता ऐसा होना चाहिये जो श्रोताओं के प्रश्न करने से पहिले ही उत्तर जानता हो - यदि आप ऐसा कहते हो तो ऐसा है और यदि ऐसा कहते हो तो ऐसा है। इस प्रकार व्याख्यान ही ऐसा करना कि श्रोताओं को प्रश्न ही उत्पन्न नहीं हो सके। पहिले से ही प्रश्नों का रास्ता बन्द करता हुआ व्याख्यान करता है क्योंकि यदि बहुत प्रश्न होने लगें तो सभा में क्षोभ मच जायेगा । __वक्ता को सहनशील होना चाहिये। यदि कोई आकर प्रबल ( कठिन) प्रश्न कर दे तो क्रोध नहीं करना चाहिये। यदि प्रश्न सुनकर वक्ता क्रोधी हो जाय तो कोई प्रश्न नहीं कर सकेगा, श्रोताओं की शंका नहीं मिट पायेगी। ८।।
वक्ता में प्रभुत्व गुण होना चाहिये। श्रोता जिसको अपने से ऊँचा जानते हैं, उसी की शिक्षा ग्रहण करते हैं। दीन की, नीच की शिक्षा कौन ग्रहण करता है ? अतः वक्ता को जगत में मान्य, प्रभु होना चाहिये।।
वक्ता को दूसरों के मन को हरनेवाला होना चाहिये, जो सभी को प्रिय हो। जो श्रोताओं को अप्रिय होगा उसकी शिक्षा कौन ग्रहण नहीं होती है। १०।
वक्ता ने स्वयं जिस विषय को अच्छी तरह से आगम से तथा गुरु परिपाटी से ठीक समझ लिया हो उसी का व्याख्यान करना चाहिये। यदि स्वयं ने ही अच्छी तरह से पूरा नहीं समझा होगा तो वह दूसरों को कैसे समझा सकेगा ? जो दीपक स्वयं प्रकाशरुप है वही घट-पटादि पदार्थों को प्रकाशित करता है।११।।
जिसकी प्रवृत्ति व्यवहार में, परमार्थ में, धर्म में, लेने में, देने में, व्यापार आदि आजीविका में, भोजन वस्त्रादि में उज्ज्वल यश सहित हो वही वक्ता हो। जिसकी प्रवृत्ति मलिन होगी उसको वक्तापना शोभा नहीं देता है। यदि प्रवृत्ति मलिन होगी तो वह जगत में मान्य नहीं रह जायगा।२।
जिसकी अन्य लोगों को ज्ञान उत्पन्न कराने की भावना हो वही वक्तापना स्वीकार करेगा। जिसे दूसरों को समझाने की भावना नहीं होगी, वह क्यों व्याख्यान करेगा ? १३।
रत्नत्रयमार्ग को चलाने में तथा रत्नत्रयमार्ग पर स्वयं चलने में जिसका उद्यम होगा, वही धर्म कथा कहनेवाला वक्ता होगा। वक्ता में अन्य कोई लौकिक प्रयोजन होना ही नहीं चाहिये।१४।
Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com