SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 370
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates षष्ठ - सम्यग्दर्शन अधिकार] [३२७ लिये नहीं जाता है। जब भिक्षा के लिये घरों में जाता है तो जहाँ तक अन्य भिक्षुओं को तथा सभी जनों को आने की रोक नहीं हो वहाँ तक ही जाता है। आशीर्वाद, धर्मलाभ आदि मुख से नही कहता है, हुंकारा या भौंहों से इशारा आदि नहीं करता है, पेट का कृशपना नहीं दिखलाता है, हाथ से मांगने का इशारा नहीं करता है; दातार को देखने के लिये, भोजन को देखने के लिये ऊपर की ओर या दिशा-विदिशा में नहीं देखता है, अधिक देर तक खड़ा नहीं रहता, बिजली की चमक के समान आधे आंगन तक जाकर रुक जाता है; तिष्ठ, तिष्ठ, तिष्ठ -ऐसे तीन बार आदर पूर्वक बोलकर खड़ा रखे तो खड़ा रहे, एक बार निकल आने के पश्चात् फिर उसी घर में नहीं जाता है, फिर अन्य घर में प्रवेश करता है। अंतराय हो जाय तो फिर अन्य घर में भी नहीं जाता है, वापिस सीधा वन को ही लौट जाता है दीनता रहित, याचना रहित, प्रासुक आहार आचारांग शास्त्र में कहे अनुसार छियालीस दोष, चौदह मल, बत्तीस अंतराय रहित भोजन प्राणों की रक्षामात्र कारण से अंगीकार करता है। सुन्दर रस-नीरस में लाभ-अलाभ में संतोषी रहना वह साधु की भिक्षा है। इस भिक्षा की शुद्धता से चारित्र की उज्ज्वल संपदा उसी प्रकार प्राप्त होती है, जिस प्रकार साधु पुरुषों की सेवा से गुणों की संपदा प्राप्त हो जाती है। मुनीश्वरों की भिक्षा पाँच प्रकार से होती है- गोचरी वृत्ति, अक्षमृक्षण वृत्ति, उदराग्नि प्रशमन वृत्ति, भ्रामरी वृत्ति, गर्तपूरण वृत्ति-ऐसे पाँच प्रकार से साधुओं की आहार में प्रवृत्ति जानना। गोचरी वृत्ति भिक्षाः जैसे लीला (नाटकीय) विकार, वस्त्र, आभरण आदि सहित, रुप यौवन से युक्त, सुन्दर स्त्री द्वारा लाये घास को गाय चरती है किन्तु उस स्त्री के अंगों का सौन्दर्य, आभरण, वस्त्रों को नहीं देखती है, केवल घास चरना ही उसका प्रयोजन है; उसी प्रकार साधु भी दातार के रुप, आभरण, सौन्दर्य को नहीं देखता हुआ, नवधा भक्ति से पड़गाहे जाने पर हाथ में रखा हुआ भोजन का ग्रास भक्षण करता है, वह गोचरी वृत्ति है। जैसे गाय वन में अनेक स्थानों में रुकती हुई जैसा घास मिल जाय तैसा भक्षण करती है, वन की शोभा, वृक्षों की शोभा देखने में परिणाम नहीं रखती है, उसी प्रकार साधु भी गृहस्थों के घर में जाकर केवल अपने हाथ में रखे हुये भोजन के ग्रास के खा लेने में दृष्टि रखता है। गृहस्थ के बड़े महल , मकान, शैया, आसन आदि देखने में; सोने, चाँदी, काँसा, पीतल. मिटटी के बर्तन आदि देखने में; अनेक भोजन व परिवारजनों के देखने में परिणाम नहीं लगाते हैं; परिकर जनों के कोमल. ललित रुप-वेष-विलासों को देखने में वांछा रहि ला आहार नहीं देखता हआ गाय के समान भोजन करता है, वह गोचरी वृत्ति या गवेषणा कहलाती है। ___अक्षमृक्षण वृत्ति भिक्षा : जैसे वणिक रत्नों से भरी गाड़ी को घृतादि चिकाने पदार्थ का धुरा में ओंगन लगाकर अपने इच्छित स्थान-देशान्तर को ले जाता है, उसी तरह साधु भी गुणरुप रत्नों से भरी अपनी देहरुप गाड़ी को निर्दोष भिक्षा भोजनरुप ओंगन देकर अपने इच्छित समाधिरुप नगर को ले जाता है, उसे अक्षमृक्षण वृत्ति कहते हैं। Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008300
Book TitleRatnakarandak Shravakachar
Original Sutra AuthorSamantbhadracharya
AuthorMannulal Jain
PublisherVitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
Publication Year2000
Total Pages527
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, & Religion
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy